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कृपाशङ्कर शर्मा
SAMBODHI
प्रवर यशोविजयजी के "द्रव्यगुण पर्यायनो रास" नामक ग्रन्थ का भी जिक्र किया। पुनः डॉ० एस० जगन्नाथ ने चतुर्थ कालांश में ग्रन्थलिपि का अभ्यास यथावत् जारी रखा । ५ जून, २००७ :
डॉ० गौतम पटेल गुजरात संस्कृत-साहित्य अकादमी, गांधीनगर के पूर्वाध्यक्ष और संस्कृत सेवा समिति के अध्यक्ष, अहमदाबाद ने 'Critical Editing of Kumarsambhav (With commentry)' विषय पर केन्द्रित व्याख्यान में सभीक्षात्मक संस्करण करते समय जिन सिद्धान्तों का ध्यान रखा जाता है उन्हें स्वानुभव से वल्लभदेव की टीका, सायणभाष्य की दीपिका टीका के उद्धरण से प्रस्तुत किया । डॉ० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि का अभ्यास यथावत् जारी रखा । तथा नन्दीनागरी के अकंज्ञान का अवबोधन कराया । डॉ० जे० बी० शाह ने हस्तप्रत के कालनिर्धारण की सहायक सामग्री पर प्रकाश डाला । जैसे-कागज, माप, छिद्र, लालरेखा, मसि, गेरु आदि। उक्त तथ्यों के आधार पर ग्रन्थ की प्राचीनता का मूल्यांकन किया जाता है । डॉ० पटेल का परिचय स्वागत प्रो० विजय पण्डया ने किया और उनकी अनुसन्धान यात्रा पर प्रकाश डाला । ६ जून, २००७ :
डॉ० गौतम पटेल ने 'सम्पादन के विविध तत्त्व' विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए बताया कि सम्पादक को सम्पाद्य किये जाने वाले ग्रन्थ की भाषा-व्याकरण का ज्ञान अत्यावश्यक है । व्याकरण भाषा के द्वारा ही ग्रन्थ के पदच्छेद, पदान्वय व्यवस्थित और शुद्ध होगा । जो अर्थस्फुटन वाला होगा । डॉ० रतन परिमू, नियामक, एल०डी० म्युजियम ने सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र की हस्तप्रत के कतिपय चित्रों के माध्यम से भारतीय चित्रकला का स्वरूप बताते हुए गुजराती चित्रकला की शैली के रुपायन को यथास्थिति उद्घाटित करने का प्रयास बताया । डॉ० जे० बी० शाह ने सूचीपत्र विषय से सम्बन्ध व्याख्यान में हस्तप्रत की माहिती, प्रतक्रमांक, महत्तासूचक चिह्न, ग्रन्थनाम, संवत्, स्थिति, लिपि, प्रतप्रकार आदि समझाया । आपने अंक मूलक पाठ, पदच्छेद मुक्तपाठ आदि पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए। महाराजभोज के धनपालकृत तिलकमञ्जरी से सम्बद्ध आख्यान को भी उद्घाटित किया । ७ जून, २००७ :
डॉ० जे० बी० शाह ने भारतीय संवत्सर परम्परा पर चर्चा कि जिसमें विक्रमसंवत्, बुद्धसंवत्, लक्ष्मणसेन संवत्, वीरसंवत्, वल्लभीसंवत्, सप्तर्षिसंवत्, शकसंवत् आदि के स्वरूप में होनेवाले परिवर्तन की भी चर्चा की।
डॉ० रतन परिमू ने सचित्र कल्पसूत्र को आधार बनाकर अपने व्याख्यान में भारतीय चित्रकला में गुजरात की चित्रकला के वैशिष्ट्य को प्रकाशित किया जिसमें चित्र और आख्यान का समन्वय हस्तप्रत में विशेष उल्लेख्य था।
डॉ० श्याम सुन्दर निगम, निदेशक, कावेरी शोधसंस्थान, उज्जैन ने पुरालिपिशास्त्र पर अपना व्याख्यान देते हुए बताया कि भारत वर्ष को लिपि ने जोडे रखा है । लिपि संस्कृति है गौरव है ।