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________________ 148 हेमलता श्रीवास्तव SAMBODHI ११. इन्द्रियार्थसन्निकर्षजन्यं ज्ञानं प्रत्यक्षम् । -तर्कसंग्रह, पृ. ७० १२. प्रत्यक्षस्य साक्षात्कारित्वं लक्षणम् । -तत्वचिन्तामणि १३. ज्ञानाकरणकं ज्ञानं प्रत्यक्षम् । -वही १४. डॉ. चन्द्रधरशर्मा, भारतीय दर्शन आलोचन और अनुशीलन, पृष्ठ १८६ १५. न्याय मत में ज्ञान आत्मा का स्वाभाविक गुण नहीं माना गया है। ज्ञान इस मत में आगन्तुक गुण के रूप में स्वीकृत है। शरीर में एक पुरातित नाड़ी रहती है। इस नाड़ी से जब मन बाहर आता है और आत्मा से सम्बद्ध होता है, तब ज्ञान उत्पन्न होता है। १६. इस दृष्टि से दक्षिण-भारत के वशिष्ठ गणपति मुनि की काव्य-प्रतिभा 'अष्टावध्यायी' के प्रयोग में मन के एक से अधिक विषयों पर एक ही समय में एकाग्र होने की क्षमता को एक उपयुक्त उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है।
SR No.520780
Book TitleSambodhi 2006 Vol 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size23 MB
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