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________________ Vol. xxx, 2006 कानून व्यवस्था के संरक्षक वैदिक वरुण देवता 125 अतो विश्वान्यदभुता चिकित्वाँ अभि पश्यति । कृतानि या च का । वही, ११ । वरुण, सभी गुप्त बातें जो हो चुकी हैं या होने वाली हैं - उन्हें देखते हैं । सम्पूर्ण मानव के सत्य व असत्य को जानने वाले हैं (यासां राजा वरुणो याति मध्ये सत्यानृते अवपश्यञ्जनानाम् ‘वही, ७.४९.३ । उनके बिना कोई भी प्राणी पलक नहीं झपक सकता है। मनुष्यों की पलकें भी उनके गिनती में हैं । मनुष्य जो कुछ भी सोचता या करता है, उन सभी को वरुण जानते हैं । इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि वैदिक काल में सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त निश्चित व्यवस्था ही कानून का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है, जिस कानून का मानव तो क्या प्रकृति भी उल्लंघन सकती थी । इसी व्यवस्था को वैदिक यग में 'ऋत' व 'सत्य' के नाम से कहा गया है। इस 'ऋत' व 'सत्य' के संरक्षण कर्ता वरुण थे जो कि नियम भङ्ग करने वालों को (कानून तोड़ने वालों को) कड़ा दण्ड देते थे । यहाँ तक कि देवता भी उनके कानून को तोड़ने पर दण्ड के भागी बनते थे।
SR No.520780
Book TitleSambodhi 2006 Vol 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size23 MB
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