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________________ इतिहास के परिप्रेक्ष्य में भगवान बुद्ध का व्यक्तित्व ललित पाण्डेय . गौतम बुद्ध का जन्म छठी शताब्दी ई. पू. में उस समय हुआ था जब भारत सहित समस्त विश्व में सामाजिक-राजनैतिक स्तर पर उत्तेजना का वातावरण था। इस समय भारत के बाहर चीन में कन्फ्यूशियस दर्शन पनपा था और ईरान में जोरोस्टर ने सुधारों को तीव्रता प्रदान की थी। इस समय भारत में जैन धर्म गौतम बुद्ध से पूर्व अस्तित्व में आ गया था और वैदिक धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया में था। सातवीं शताब्दी ई. पू. के आसपास जब औपनिषदिक चिन्तन की धारा प्रवाहित हुई तो उसके चिन्तकों ने एक ओर तो वेदों की अंत:प्रेरणा को तथा वैदिक यज्ञों की श्रेष्ठता को तुलनात्मक रूप में स्वीकार किया तो दूसरी ओर चिन्तन परम्परा में कुछ ऐसा चिन्तन भी हुआ जिसने रूढ़िवादिता को नकारते हुए वैदिक चिन्तन को ही खारिज करने की चेष्टा की (विलियम, थियोडर डे बेर, १९६३, पृ. ३९) । राजनैतिक दृष्टि से इस समय प्राचीन विशः और जन विखण्डित हो रहे थे जो परम्परागत रूप से कुलीनतन्त्रात्मक थे जिसमें एक सर्वोच्च राजा नहीं होता था, दूसरी ओर गंगा के मैदानी भाग में राजतन्त्र स्थापित हो रहे थे । इम कलीनतन्त्रों में प्रमुख शाक्य, कोलीय, मल्ल तथा वज्जि थे। ये कलीनतन्त्र हिमालय की तलहटी में तथा उत्तरी पश्चिमी भारत में स्थित थे । उत्तरी-पश्चिमी भारत के विपरीत हिमालय की तलहटी में स्थित कुलीनतन्त्र वैदिक परम्परा के अनुयायी नहीं थे । इनको एकाधिक ब्राह्मण ग्रन्थों में व्रात्य क्षत्रिय कहा गया है क्योंकि इन्होंने वैदिक कर्मकाण्ड को अमान्य कर दिया था, यह ब्राह्मणों का सम्मान भी नहीं करते थे। गंगा के मैदानी भूभाग में विकसित हो रहे ये राजतन्त्र तथा कतिपय कुलीन तन्त्र भी सत्ता संघर्ष में संलग्न थे जिस संघर्ष की अंतिम परिणति मगध के उत्कर्ष के रूप में हुई थी। मगध के उत्कर्ष की अवस्था में भी तक्षशिला जैसा केन्द्र, जहाँ पाणिनी ने अष्टाध्यायी की रचना की थी, इन राजनैतिक परिवर्तनों से प्रभावित नहीं था तथा गान्धार का क्षेत्र इस समय हेरोडोटस के अनुसार अखमनी साम्राज्य की २०वीं क्षत्रयी था । अर्थात् यह वह समय था जब मगध के समीपवर्ती क्षेत्र में हिमालय की तलहटी के क्षेत्रों सहित आर्य संस्कृति पूर्णतः स्थापित नहीं हुई थी। इस समय की राजनैतिक एकीकरण की प्रक्रिया ने प्राचीन विश: और जनों के भावनात्मक संबंधों के विखण्डित होने से एक निराशावादी वातावरण बना दिया था जिससे देहान्तरण अथवा परलोकगमन (transmigration) की भावना सम्पूर्ण उत्तरी भारत में बलवती हो गयी थी । सम्भवतः इसका दूसरा कारण, राजनैतिक एकीकरण के अलावा बढ़ता हुआ व्यापार तथा क्षत्रियों और वैश्यों के अधिकारों में वृद्धि होना था । तत्कालीन साहित्य के अवलोकन से भी उद्घाटित होता है कि क्षत्रिय का स्थान ब्राह्मण से उच्च हो गया था । इन्हीं कारणों ने सम्भवतः बौद्ध व जैन धर्म के जन्म व उदय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520778
Book TitleSambodhi 2005 Vol 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, K M Patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages188
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
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