SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 70 मञ्जुलता शर्मा SAMBODHI' कि "यदि किसी की हिंसा में विशेष प्रवृत्ति हो तो यज्ञ में पशु का केवल आलभन (स्पर्श) करना चाहिये उसका वध नहीं । वध करने पर नरक की प्राप्त होती है। इस विवाद पर विराम लगाने के लिये पर्याप्त है । अतः बिना किसी कार्य के तो तृण का भी छेदन नहीं करना चाहिये क्योंकि उसमें भी सूक्ष्म वेदना होती है - तृणमपि विना कार्य छेत्तव्यं न विजानता अहिंसा निरतो भूयाद्यथात्मनि तथापरे । यह उपदेश प्रकृति संरक्षण के लिए भी महावाक्य कहा जा सकता है । वास्तविकता यही है कि अहिंसा का आचरण मनसा, वाचा, कर्मणा, है यह एक ऐसा मानवीय गुण है जिस पर विश्वशान्ति का स्वरूप निर्मित किया जा सकता है। सामान्यधर्म के परिप्रेक्ष्य में सत्य हमारी संस्कृति का प्राणतत्त्व कहा जाया है। इससे पारस्परिक सौख्य में वृद्धि होती है। सत्य केवल वाणी नहीं अपितु ऐसी आत्मिक शक्ति है जिससे बलशील योद्धा भी परास्त किये जा सकते हैं । परन्तु सत्य के विषय में एक निर्मल धारणा यह भी है कि यह पराई पीड़ा से रहित होना चाहिए सत्यमेकं परोधर्मः सत्यमेकं परं तपः सत्यमेकं परं ज्ञानं, सत्ये धर्मप्रतिष्ठितः० अप्रिय वचनों से पीड़ा उत्पन्न होती है इसलिये तपस्या के समान श्रेष्ठ सत्य का परिपालन ही आर्य धर्म है । अग्निपुराण का मत है कि सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम प्रियं च नानृतं ब्रूयादेषः धर्मः सनातनः । वास्तव में लौकिक सुखों के साथ-साथ अलौकिक सुख भी सत्य के द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं । सत्य से सूर्य प्रकाशित होता है, जल रसरूप होता है, अग्नि प्रज्ज्वलित होती है और वायुप्रवाहि होती है । सत्य से ही यह भूमि स्थित है सत्य से सागर मर्यादित है ।२ राजा हरिश्चन्द्र सत्यवक्ता होने के कारण सत्यलोक में प्रतिष्ठित हुये । वस्तुतः जो मनुष्य सर्वदा सत्य में ही रति रखता है किसी भी दशा में मिथ्या वचन नहीं बोलता सदैव सत्य से समन्वित कार्य करता है वह सशरीर अच्युत को प्राप्त करता है ।१४ क्योंकि धर्म विष्णु की काया है और सत्य उनका हृदय है ।५ इसलिये वर्तमान भौतिक परिवेश में जहाँ सत्य का उपहास किया जा रहा है, सत्यवादी को उत्पीड़ित करके उस पर मिथ्या आरोप लगाये जा रहे हैं । न्यायालयों में सत्य को किनारे रखकर असत्य प्रमाण एकत्रित किये जाते हैं ऐसी दुर्भावनापूर्ण व्यवस्था में पुराणों द्वारा निर्दिष्ट किया गया दृष्टिकोण सत्य के प्रति न्याय कर सकता है। क्योंकि यह एक ऐसा ज्योति स्तम्भ है जिसकी प्रकाश मानवमन को आलोकित करता है। परिस्थिति के प्रतिकूल होने पर सत्य की परीक्षा होती है अतः मौन रहना उत्तम है परन्तु मिथ्यावचन अनुचित है - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520778
Book TitleSambodhi 2005 Vol 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, K M Patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages188
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy