SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 112 हुकमचंद जैन SAMBODHI अपहरण कर लेता है । रयणचूड तिलक सुन्दरी को खोजता हुआ निर्जन रिष्टपुर नगर पहुँचता है । जहाँ वानरी के रूप में सुरानन्द मिलती है। विद्या द्वारा उसका उद्धार कर विवाह कर लेता है। बाद में सूर्यप्रभ मुनि द्वारा मुनि के पूर्व जन्म कि कथा सुनता है जिसमें समस्या पूति द्वारा राजहंसी से विवाह करता है । इस प्रकार तिलकसुन्दरी, सुरानंदा, राजश्री, पदमश्री, राजहंसी से विवाह कर लेता है। पाँचों पत्नियों के सुख को भोगता हुआ सपरिवार तीर्थ यात्रा करने की सोचता (४) सपरिवार तीर्थयात्रा और धर्मोपदेश :- रत्नचूड पाँचों पत्नियों एवं माता पिता के साथ मेरू पर्वत पर जिनेन्द्र के दर्शन करने गये । वहाँ सुरप्रभ मुनि से धर्मोपदेश सुना । उन्होंने दान के दृष्टांत में राजश्री का पूर्वभव, शील के दृष्टान्त में पद्मश्री का पूर्वभव, तप धर्म के दृष्टान्त में राजहंसी का पूर्वभव, भावना धर्म के दृष्टान्त में सुरानन्दा के पूर्वभव की कथा सुनाई । अन्त में रत्नचूड . और तिलकसुन्दरी का पूर्वभव भी सुनाया । सभी लोगों की धर्म में दृढ़ आस्था हो गई। दुश्चेष्टा के परिणाम-कथन के रूप में अमरदत्त और मित्रानन्द कि कथा :- सुरप्रभ मुनि से तिलकसुन्दरी ने रत्नचूड के वियोग का कारण पूछा, तब मुनि ने कहा पूर्वजन्म में तिलकसुन्दरी ने क्रीड़ा करते हुए कबूतर को यह कहकर उड़ा दिया कि वह कभी न मिले । ऐसी दुश्चेष्टा के कारण वियोग हुआ । ऐसी ही एक कथा अमरदत्त और मित्रानन्द कि सुनाता है । रत्नचूड आदि सभी श्रावक दीक्षा स्वीकार करते हैं । (६) रत्नचूड द्वारा धार्मिक अनुष्ठान एवं क्रमशः मोक्ष प्राप्ति :- रत्नचूड ने धार्मिक जीवन जीते हुए अनेक धार्मिक अनुष्ठान किये । मन्दिरों का निर्माण करवाया । पूजा, दान आदि कार्य किये और केवल ज्ञान प्राप्त किया । आगे चलकर मोक्ष की भी प्राप्ति करेगें। इस प्रकार गौतम स्वामी ने श्रेणिक राजा को रत्नचूड का चरित्र संक्षेप में सुनाया । जिन पूजा के महत्व आदि के रूप में यह कथा प्रसिद्ध है। रयणचूडरायचरियं की कथावस्तु से प्राचीन भारतीय शिक्षा एवं विद्याओं के सम्बन्ध में भी कुछ जानकारी प्राप्त होती है । यद्यपि शिक्षा और विद्या से सम्बन्धित ग्रन्थ में उपलब्ध सामग्री मध्ययुग की शिक्षा और विद्या के सम्बन्ध में कोई विशेष तथ्य प्रस्तुत नहीं करती है। किन्तु इससे प्राचीन संस्कृति की पुष्टि अवश्य होती है । ग्रन्थ में उपलब्ध सामग्री को संक्षेप में यहाँ दिया जा रहा है - शिक्षा और विद्या - रत्नचूडकुमार की शिक्षा राज-भवन के भीतर शाला बनवाकर प्रदान की गयी थी । ग्रन्थ से यह पता चलता है कि शिक्षा प्रारम्भ करते समय तिथि-नक्षत्र आदि का ध्यान रखा जाता था । रत्नचूड को प्रशस्त मुहूर्त में गुरुवार को रिक्ष और हस्त नक्षत्र में धवल पंचमी के दिन श्वेत वस्त्र और फूलों से अलंकृत करके सरस्वती देवी की पूजा पूर्वक कलाचार्य को समर्पित किया गया था। शिक्षा प्राप्त करने के लिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520778
Book TitleSambodhi 2005 Vol 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, K M Patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages188
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy