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________________ 88 वसन्तकुमार भट्ट SAMBODHI परन्तु इस सत्यवाणी के प्रयोग के सन्दर्भ में 'मनुस्मृति' की एक विशेष बात दृष्टिपथ में आती है । ऋणादानादि के व्यवहार में कोई साक्षी यदि विद्यमान नहीं है, या उपलब्ध नहीं है, तो ऐसे असाक्षिक व्यवहार में सत्यनिर्णय कैसे किया जाय ? इस प्रश्न को लेकर मनुस्मृति में कहा गया है कि - असाक्षिकेषु त्वर्थेषु मिथो विवदमानयोः । अविन्दंस्तत्त्वतः सत्यं शपथेनापि लम्भयेत् ॥ - मनुस्मृतिः (८-१०९) अर्थी-प्रत्यर्थी के बीच में विवाद उत्पन्न होने पर, और उन दोनों के बीच यदि कोई साक्षी नहीं है, तो वहाँ पर प्राविवाक शपथ दिला कर सत्य का अन्वेषण करे ॥१४ स्मृतिकार कहते है कि स्वल्प प्रयोजन के लिए भी वथा शपथ ग्रहण नहीं करना चाहिए । क्योंकि वृथा शपथ लेने पर व्यक्ति इहलोक में अपकीर्ति प्राप्त करता है और मरणोपरान्त नरक में जाता है ।१५ शपथकार्य का नियम बताते हुए मनुने लोभ से, मोह से, मैत्री से, काम से, क्रोध से, अज्ञान से अथवा बालभाव से प्रेरित असत्य साक्ष्य का निषेध भी किया है । अतः लोभादिवशात् जो कूटसाक्ष्य (असत्य उक्ति) दिया गया होता है वहाँ पर विविध प्रकार के दण्ड का विधान भी उन्होंने किया है । (द्रष्टव्यः- ८-१८, ११९, १२०, १२१) परन्तु, जैसा कि अन्यत्र मनुस्मृतिकार किसी भी विषय में धर्माचरण का विधिविधान करने के बाद, अपवादस्थल भी उल्लिखित करते है वैसे ही, यहाँ पर (शपथग्रहण के सन्दर्भ में) भी एक विशिष्ट अपवाद का निरूपण करते है । वे कहते हैं कि - कामिनीषु विवाहेषु गवां भक्ष्ये तथेन्धने । ब्राह्मणाभ्युपपत्तौ च शपथे नास्ति पातकम् ॥ - मनुस्मृतिः (८-११२) अर्थात् - बहुभार्यायोग होने पर कामिनीओं के साथ, विवाहप्रसङ्ग में, गोभक्षण के विषयमें, होमार्थक इन्धनादि का उपाहरण करने के लिए तथा ब्राह्मणरक्षा के प्रसङ्ग में वृथा शपथ लेने में कोई पातक नहीं लगता है ।१६ समग्र जीवन में धर्माचरणपूर्वक ही कालयापन करना चाहिए । परन्तु जीवन में ऐसे कतिपय प्रसङ्ग भी आते हैं, जिसमें, मनुष्य को हास-परिहास का अवसर या अवकाश मिलना चाहिए । अतः मनु कहते है कि - कामिनीओं के साथ व्यवहार करते समय या विवाहादि के प्रसङ्ग में वृथा शपथ का आश्रयण लिया जा सकता है। क्योंकि उससे किसी को हानि नहीं है । जीवन में माधुर्य लाने के लिए हास-परिहास की आवश्यकता है। ऐसी बात स्मृतिकारों की दृष्टि से बाहर नहीं है यह जान कर साश्चर्य आनन्द होता है ।
SR No.520777
Book TitleSambodhi 2004 Vol 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages212
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size25 MB
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