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________________ Vol. XXV, 2002 २३. नवतत्त्व प्रकरण ११ देवगुप्तसूरि प्रणीत. २४. स्थानांग सूत्र 1 / 16 टीका. २५. “अनशनावमौदर्य वृत्ति परिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशा बाह्यं तपः । " २६. “विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः । " २७. " तपो नानशनात् परं । यद्वि परं तपस्तद् दुर्धुर्षम् तद् दुराधर्षम् । " २८. उत्तराध्ययन 29/35. २९. भगवती सूत्र 25/7. जैन दर्शन में निर्जरा तत्त्व ३८. (क) भगवती 7/1. (ख) आचारांग 8 / 6. ३६. उत्तराध्ययन 32 / 10. ३७. (क) प्रवचनसारोद्धार वृत्ति - प्रत्याख्यान द्वारा । (ख) योगशास्त्र ३, प्रकाशवृत्ति. ३९. भगवती 25/7. ४०. आवश्यक निर्युक्ति 1547. ४९. उत्तराध्ययन 2 / 27. ४२. स्थानांग 7 सूत्र 554. ३०. उत्तराध्ययन 30 /9. ३१. जैनधर्म में तपः स्वरूप और विश्लेषण ( मुनिश्री नथमलजी ) पृ० 181-199. ३२. " आवकहिए दुविहे पण्णत्ते - पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणेय । ” . उववाई सूत्र. ३३. अष्टक प्रकरण 5 / 1. ३४. (क) उत्तराध्ययन 30 / 25. (ख) स्थानांग 6. ३५. (क) उत्तराध्ययन 24 / 11-12. (ख) पिण्डनिर्युक्ति 92-93. Jain Education International • भगवद्गीता 2/59. - मैत्रायणी आरण्यक 10/62. For Personal & Private Use Only - तत्त्वार्थ सूत्र 9/19. - 155 www.jainelibrary.org
SR No.520775
Book TitleSambodhi 2002 Vol 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size5 MB
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