SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 144 डा० मुकुल राज महेता SAMBODHI १. अनशन - मर्यादित समय तक अथवा जीवन पर्यन्त सभी प्रकार के आहार का त्याग करना "अनशन" कहलाता है। इसे बाह्य तपों में प्रथम स्थान प्राप्त है । यह तप अन्य तपों से अधिक कठोर और दुर्घर्ष है। इसमें भूख पर विजय प्राप्त करनी होती है और विश्व में भूख पर विजय पाना दुर्जेय है। भूख को जीतना और मन का निग्रह करना “अनशन" तप है। उपवास करने से तन की ही नहीं बल्कि मन की भी शुद्धि होती है। गीता में कहा गया है – “आहार का त्याग करने से विषय विकार दूर हो जाते हैं और मन भी पवित्र हो जाता है ।"२६ एक वैदिक ऋषि ने कहा है – “अनशन से बढ़कर कोई और तप नहीं है। साधारण मानव के लिए यह तप बड़ा ही दुर्घर्ष-सहन करना और वहन करना कठिन है, कठिनतम है।" २७ भगवान महावीर के अनुसार — “आहार का त्याग करने से जीवन की आशंसा अर्थात् शरीर एवं प्राणों का . . मोह छूट जाता है।"२८ तपस्वी साधक को न शरीर का मोह रहता है और न ही प्राणों का ! एक चिन्तक ने कहा कि - उपवास में १. ब्रह्मचर्य का पालन, २. शास्त्र का पठन, ३. आत्म स्वरूप का चिन्तन ये तीन कार्य करने चाहिए और १. क्रोध, २. अहंकार, ३. विषय, प्रमाद का सेवन ये तीन कार्य कभी भी नहीं करना चाहिए। __ अनशन का अर्थ आहार त्याग से लिया गया है। यह त्याग कम से कम एक दिन-रात, छः महीने या विशेष अवस्था में जीवन पर्यन्त का हो सकता है। इसके दो भेद किये गये हैं – इत्वारिक – कुछ निश्चित समय के लिए, और यावत् कथिक—जीवन पर्यन्त के लिए ।२९ इत्वारिक तप में निश्चित समय के बाद भोजन की इच्छा जाग्रत होती है । इसलिए इस तप को सावकांक्ष तप भी कहते हैं और यावत् कथिक तप में योजन की कोई आकांक्षा शेष नहीं रहती, इसलिए इसे निरवकांक्ष तप कहा गया है ।३० ___ इत्वारिक तप के नवफारसी, पौरसी, पूर्वार्ध, एकाशन, एकस्थान, आयंबिल, दिवस चरिम, रात्रि भोजन त्याग, अभिग्रह, चतुर्थभक्त आदि अनेक भेद हैं ।३१ यावत्कालिक अनशन के पादपोपगमन और भक्त प्रत्याख्यान ये दो भेद हैं ।३२ भक्त प्रत्याख्यान में भोजन त्याग के साथ-साथ सतत स्वाध्याय, ध्यान-आत्मचिन्तन में समय बिताया जाता है। साधक हमेशा प्रसन्न की अवस्था में रहता है। पादपोपगमन तप में एक ही स्थिति में स्थिर रहना बताया गया है। जैसे-टूटे हुए वृक्ष में चंचलता नहीं होती, उसी प्रकार यदि व्यक्ति की आँख खुली है तो उसे बन्द नहीं करना। २. अवमोदार्य (अनोदरी)- जितनी भूख की इच्छा हो, उससे कम भोजन करना अवमोदार्य (ऊनोदरी) कहा गया है। यह निर्जरा का दूसरा भेद है। इसे अल्प आहार या परिमित आहार भी कहते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520775
Book TitleSambodhi 2002 Vol 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy