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वसन्तकुमार भट्ट
SAMBODHI यहाँ पर राम के लिए सीता ने जो “निरनुक्रोश" ऐसा विशेष नामाभिधान दिया है वह बहुत सूचक है। आपन्नसत्त्वा स्त्री का परित्याग तब ही कोई व्यक्ति कर सकता है, जब वह निरनुक्रोश' बनकर अमानवीय क्रूरता को धारण करले। सीतादेवी राम की शिकायत किस को करे ? वह राम के लिए केवल 'निरनुक्रोश' शब्द का प्रयोग करके अपने मन के आक्रोश को व्यक्त करती है। रघुवंश में, कालिदास की सीता तो"वाच्यस्त्वया मद्वचनात् स राजा..."। (रघुवंशम् १४-६३) कह कर राजा राम के पास एक प्रजाजन की हैसियत से न्याय माँगती है, परन्तु कुन्दमालाकार की सीता ने तो राम को 'निरनुक्रोश' कह कर राम के अमानवीय वर्तन के लिए, एक चित्कार के साथ सर्वकालिक शिकायत कर दी है। मानवमात्र में जिस अनुक्रोशत्व की हम उम्मीद रख सकते है, उसका पुरुषोत्तम राम में ही क्या सर्वथा अभाव हो गया है ?यह सीतादेवी का गम्भीर आक्षेप है। सीता राजा राम के पास भी नहीं और पति राम के पास भी नहीं, बल्कि एक साधारण मनुष्य के पास जिसकी हम सब अपेक्षा रख सकते हैं, वह अनुक्रोशत्व याने परदुःखदुःखिता की अपेक्षा रखती है।
यदि हम लोग करुणा के महासागर परमात्मा के अंशभूत हैं, तो अनुक्रोशत्व हमारे में सहज होगा ही. और परमात्मा के कारुण्य से अनुगृहीत हुए हम सब लोगों का यह पवित्र कर्तव्य होगा कि हम लोग अनुक्रोशत्व से अनुप्राणित हो, और तदनुसार सर्वत्र व्यवहार करें। हमें इस बात का इङ्गित मिलता है भास के 'अविमारक' नाटक से । :___ राजा कुन्तिभोज की पुत्री कुरङ्गी अञ्जनगिरि नामक मदमस्त हाथी से आक्रान्त होने वाली थी, और क्षणार्ध में अकल्प्य अनिष्ट की सम्भावना खड़ी हो गई थी। तब कोई अज्ञात युवक ने राजकुमारी को अभय दिया और हाथी को मार भगाया। यह बात सुनकर राजा कुन्तिभोज के मुँह से एक वाक्य निकल आता है : अनृणः स कारुण्यस्य । २ अर्थात् उस अज्ञात युवक ने परमात्मा के कारुण्य का ऋण अदा कर दिया ।
और आगे चलकर कुन्तिभोज की पत्नी ने इस अज्ञात परव्यसनसहायभूत युवक को 'सानुक्रोश' व्यक्ति कहा है। अविमारक कुरङ्गी को संत्रस्त देखकर, उसको अभय देने के लिए, बिना पूर्वपरिचय के, और अपनी गोपनीयता को भी दाव पर लगा कर जो दौड़ पड़ता है, वह उसकी परदुःखदुःखिता है, सानुक्रोशत्व है। संस्कृत कविओं द्वारा विभिन्न सन्दर्भो में बताया हुआ यह अनुक्रोशत्व एक सर्वोच्च मानवीयतत्त्व है उसमें अब कोई सन्देह नहीं है।
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