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गण्डस्स कहाणयं
संपादक : जितेन्द्र शाह प्राकृत भाषा में निबद्ध प्रस्तुत कृति की दो हस्तलिखित प्रतियों के बारे में जानकारी उपलब्ध होती हैं । (१) जैसलमेर दुर्ग स्थित आचार्य गच्छ के कागज के भण्डार में तथा (२) महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा स्थित आचार्य कैलाससागरसूरि जैन ज्ञान मंदिर संग्रह में उपलब्ध प्रति । इन दो प्रतियों में से जैसलमेर दुर्गस्थ प्रति उपलब्ध नहीं होने कारण आचार्य कैलाससागरसूरि ज्ञान मंदिर में १२४१५ क्रमांक में सूचित गण्डस्स कहाणयं की एकमेव प्रति के आधार पर प्रस्तुत ग्रन्थ का संपादन किया गया है । कोबा के भण्डार की प्रति की स्थिति अच्छी है । कुल १५ पृष्ठ हैं । प्रत्येक पृष्ठ पर १५ पंक्तियाँ हैं और प्रत्येक पंक्ति में करीबन ४३ अक्षर है । अंतिम पृष्ठ पर पाँच पंक्तियाँ है ।
कोबा की प्रति में कर्ता के बारे में कुछ भी उल्लेख प्राप्त नहीं है। जबकि जैसलमेर दुर्ग स्थित आचार्य गच्छ के भंडार की प्रतों की सूचि में इस ग्रन्थ के कर्ता के रुप में राजप्रमोद का उल्लेख प्राप्त होता है। यह राजप्रमोद कौन? कब हुए? उन्होंने अन्य ग्रन्थों की रचना की है। या नहीं इस विषय में कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं है । साधक शिरोमणि श्री जौहरीमलजी पारख के द्वारा प्रकाशित जेसलमेर हस्त लिखित ग्रंथ सूचि में इस कृतिके लेखक के रुप में कुछ भी सूचित नहीं है, किन्तु मुनिश्री जम्बूविजयजी के द्वारा प्रकाशित सचि में लेखक और लेखन संवत का उल्लेख उपलब्ध है। पर कोबा से प्राप्त प्रति में आदि या अन्त में
वैसा कोई उल्लेख नहीं होने से यहाँ पर यह ग्रन्थ अज्ञात कर्तृक है वैसा माना है। . ग्रन्थ के नाम के अनुसार इस ग्रन्थ में गण्ड की कहानी वर्णित है । गण्ड नामक एक पुरोहित है ओर उसकी. पाँच सौ पत्नियाँ हैं । वह स्वयं राज्यकार्य में अत्यंत व्यस्त रहता है । अपनी पत्नियों की सुरक्षा के लिए एक अभेद्य आवास निमिति करता है, जहाँ पर चिडियाँ भी प्रवेश नही कर सकती और यदि गलती से कोई वहाँ घुसता है तो उसे कठोर दण्ड दिये जाने की घोषणा की गई है । अतः वहाँ कोई जाता ही नहीं है । लेकिन एकबार एक मासोपवासी मुनि पारणे. के लिए वहाँ चले जाते हैं । और वे गण्ड की पाँच सौ पत्नियों के समक्ष अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह इन पाँच व्रतों से संबंधित कहानियाँ और हिंसा, स्तेय इत्यादि अव्रत से संबंधित कहानियाँ सुनाते हैं । जब यह संवाद चल रहा है तब वहाँ पर गण्ड आ पहुँचता है । वह आगबबूला होकर साधु को शिक्षा देने के लिए सोचता है, उसके पहले उनके मन में विचार आता है कि मैं जरा साधु का संवाद सुन तो लूँ । वह जैसे जैसे संवाद सुनता है वैसे वैसे उसके मन के भाव बदलते जाते हैं । अन्त में वह व्रत की महत्ता का स्वीकार करता है और अपनी पाँच सौ पत्नियों के साथ अहिंसा इत्यादि पाँचो व्रतों का स्वीकार करता है । ___ यहाँ प्रयोजित व्रत और अव्रत की अधिकांश कथाएँ लोकप्रसिद्ध एवं जैन कथा साहित्य की परिचित कथाएँ है । कथाएँ अत्यन्त सरल भाषा में, सुबोध शैली में प्राकृत भाषा में प्रस्तुत की गई है । रोचक शैली में गुंथी हुई लघु कथाएँ पाठक के लिए रसप्रद बनी हैं और इनके द्वारा सरल उपदेश देने का कर्ता का उद्देश्य सफल हुआ है ।
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