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________________ SAMBODHI पारुल मांकड सेतु. के एक अन्य टीकाकार मुदम्मल यहाँ निदर्शना मानतें हैं। आलंकारिक नरेन्द्रप्रभसूरि इसमें दृष्टान्त मानतें हैं। तो ताण' हयच्छायं णिच्चल लोअणसिहं पउत्थपयांव । आलिक्खपईवाण व णिययं पयइचडुलत्तणं पि बिअलिअं ॥ (सेतु. २/४५) ततस्तेषां हतच्छायं निश्चललोचनशिखं प्रोषितप्रतापम् । आलेख्यप्रदीपानामिव निजकं प्रकृतिचल्लुत्वमपि विगलितम् ॥ भोज और हेमचन्द्र प्रस्तुत उद्धरण का निर्देश करतें हैं। भोज इसमें सामान्यालंकार के एक भेद क्रियागुणयोगनिमित्तसाम्या उत्तरा नामक दृष्टान्तोक्ति मानतें है। (स. कं. पृ. ४३४-४३५) हेमचन्द्र (का.शा. पृ. १४५) प्रस्तुत उद्धरण 'स्तम्भ' नामक सात्त्विक भाव के उदाहरण के रूप में पेश करतें हैं। इस पद्य में वानरों की स्तब्धता का निरूपण है । वानरजाति स्वभाव से ही चंचल है, परंतु यहाँ समुद्रदर्शन से 'चित्र' में आलिखित हों - ऐसे निरूपित किये गये हैं। मनोहर उपमालंकार भी इस पद्य को अलंकृत करता है। हेमचन्द्र ने शब्दवैचित्र्य के लिए भी सेतु. में से एक उद्धरण लिया है। तं तिअसबन्दिमोक्खं समत्तलोअस्स हिअअसल्लुद्धरणं । सुणह अणुरायइधं सीयादुक्खक्खयं दसमुहस्स वहं ॥१६ [तं त्रिदशबन्दिमोक्षं समस्तत्रैलोक्यहृदयशल्योद्धरणम् । शृणुतानुरागचिह्न सीतादुःखक्षयं दशमुखस्य वधम् ॥] अत्र शब्दवैचित्र्य के अंतर्गत वक्तव्यार्थ' = काव्य का जो वक्तव्य है, उसका प्रतिज्ञान होता है। सेतुबन्ध के टीकाकार रामदास भूपति ने इस पद्य में कर्तव्यकाव्य निर्दिष्ट किया है और तीन वक्तव्यार्थं को स्पष्ट किया है - (१) त्रिदश. = रावण के कारागृहसे बन्दियों की मुक्ति (= देवताओं की) (२) समस्त त्रिभुवन के हृदय का शल्यनिवारण (३) सीता के दुःख की समाप्ति । (पृ. ९, १०) धीरं व जलसमूहं तिमिणिवहं विअ सपक्खपव्वअलोअम् । णइसोत्तेव तरङ्गे रअणाईं व गरुअगुणसआई वहन्तम् ॥ * तं ताण पाठान्तर भी है।
SR No.520773
Book TitleSambodhi 2000 Vol 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages157
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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