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________________ 83 Vol.XXIII, 2000 काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में 'सेतुबन्ध' के कतिपय उद्धरण... अव्यवच्छिन्नप्रसृतोऽधिकमुद्धावतिस्फुरितशूर(शौर्य)च्छायः । उत्साहः सुभटानां विषमस्खलितो महानदीनामिव स्रोतः ॥११ प्रस्तुत पद्य भोजने साम्यालंकार के अन्तर्गत ‘क्रियागुणद्रव्ययोगनिमित्ता दृष्टान्तोक्ति के उदाहरण के रूप से दिया है। यहाँ पर अव्यवच्छिन्नप्रसृत में क्रियायोग निमित्त है, स्फुरतिशौर्यच्छाय में गुणयोग ओर स्फुरितशूरच्छाय में द्रव्ययोग निमित्त है। इन निमित्तोंसे साम्य प्रतिपादित हुआ है। रत्नेश्वर ने इसको क्रियादियोग निमित्ता दृष्टान्तोक्ति बताया है । (स. कं. पृ. ४३२) सेतु. की भारतीय विद्या. आवृत्ति में संस्कृत छाया अलग है। (पृ. ६३) रामदास भूपति ने 'रामसेतुप्रदीप' टीका में उपर्युक्त पद्य में दृष्टान्त माना है और अलंकार को इस तरह स्पष्ट किया है। यथा महानदीनां स्रोतोऽव्यवच्छिन्नप्रसृतं स्फुरिता सूरस्य सूर्यस्य छाया प्रतिबिम्बो यत्र तथाभूतं सत्पर्वतादिनिम्नोन्नतप्रदेशे स्खलितमधिकमुद्धावत्थूर्ध्वमुत्तिष्ठति । तथा वीराणामप्युत्साहो यथा यथा विषमभूमिलाभस्तथा तथा प्रौढिमालम्बत इति तात्पर्यम् । (पृ. ६३) स्पष्ट है, कि भोज के टीकाकार रत्नेश्वर भोज को अनुमोदित करतें है और साम्यालंकार के भेदरूप में यहाँ उत्तरा नामक दृष्टान्तोक्ति स्वीकार करतें हैं, जब कि, रामदास भूपति के विवरण से प्रस्तुत पद्य को दृष्टान्तालंकार का माना जा सकता है। कुलनाथ 'रामसेतुप्रदीप' से मिलता जुलता कथन करतें हैं। (द्रष्टव्य प्रा. हेन्दीक्वी, पृ. २३४) डॉ. बसाक संपादित आवृत्ति में इस पद्य की संख्या १८ है । आवाअभअअरं० ११/७५ (पृ. ६४८ पर पूरा पद्य उल्लेखित है) इत्यादि में भोज करुणरस ही मानतें हैं, और करुण में चिरसमागमसुख की प्राप्ति निबंधरूप वचन निषिद्ध है, ऐसा प्रतिपादित करतें हैं। (पृ. ६४४) सेतु. ४/४३ उअहिस्स जसेण जसं धीरं धीरेण गरइआइ वि गरुअम् । रामो ठिएअ वि ठिई भणइ रवेण अ खं समुप्फुन्दत्तो ॥ उधैर्ययशसा यशो धैर्यं धैर्येण गुरुतयापि गुरुताम् । रामः स्थित्यपि स्थिति भणति रवेण च खं समभिक्रामन् ॥ भोज प्रस्तुत पद्य अव्यवहित दोष का जो 'व्यस्त' भेद है, उसके उदाहरण के रूप में पेश करते हैं। स
SR No.520773
Book TitleSambodhi 2000 Vol 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages157
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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