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________________ काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में 'सेतुबन्ध' के कतिपय उद्धरण - एक अध्ययन ।* पारुल मांकड़ महाराष्ट्री प्राकृत-भाषाबद्ध प्रवरसेन का 'सेतुबन्ध महाकाव्य अपनी मिसाल आप है। वाकाटक वंश के राजा प्रवरसेन द्वितीय का समय ईसा की पाँचवीं शताब्दी में निर्धारित किया गया है। सेतुबन्ध के तीन अपरनाम है, रामसेतु, रावणवध (रावणवहो) और दशमुखवध (दहमुहवहो)। उपलब्ध अलंकार ग्रन्थों में 'सेतुबन्ध' के बारे में सर्व प्रथम निर्देश आचार्य दण्डिन् ने दिया है। महाराष्ट्राश्रयां भाषां प्रकृष्टं प्राकृतं विदुः। सागरः सूक्तिरत्नानां सेतुबन्धादि यन्मयम् ॥ (काव्यादर्श. २/३४) अर्थात् सूक्तिरूप रत्नों के सागररूप 'सेतुबन्ध' इत्यादि (प्रबन्ध) जिसमें रचे गये हैं, वह महाराष्ट्र में बोली जानेवाली सर्वश्रेष्ठ प्राकृत भाषा मानी गई है। प्रस्तुत पद्य में दण्डी ने 'सेतुबन्ध' को सूक्तिरूप समुद्र की उपमा दी है और उसकी भाषा - महाराष्ट्री को प्राकृत भाषा में सर्वश्रेष्ठ माना है। ____ महाकवि बाणने मनोरम और यथार्थ उपमा द्वारा 'सेतुबन्ध' के रचयिता महाकवि प्रवरसेन की स्तुति की है कीर्तिः प्रवरसेनस्य प्रयाता कुमुदोज्ज्वला । सागरस्य परं पारं कपिसेनेव सेतुना ॥ - हर्षचरित - प्रारंभिक पद्य - १४ धनपाल (ईसा की ११ वीं शती)ने भी तिलकमज्जरी की प्रस्तावना में 'सेतुबन्ध' और 'प्रवरसेन' की भूरी भूरी प्रशंसा की है - जितं प्रवरसेनेन रामेणेव महात्मना । तरत्युपरि यत्कीर्तिः सेतुर्वाङ्मयवारिधेः ॥ (प्रास्ताविक, पद्य-२२)४ आचार्य आनन्दवर्धन ने 'ध्वन्यालोक' के द्वितीय उद्योत में अलंकारों का 'अपृथग्यत्ननिर्वर्त्य' प्रतिपादित करते समय रसांगरूप अलंकारों का निदर्शन किया है, यथा - रसाक्षिप्ततया यस्य बन्धः शक्यक्रियो भवेत् । अपृथग्यत्लनिर्वर्त्यः सोऽलङ्कारो ध्वनौ मतः ॥ (ध्वन्या. २/१६)५ * Presented at the A.I.O.C., held at Baroda on 13-15 Oct. 1998. * Reader, L. D. Institute of Indology, Ahmedabad-380009.
SR No.520773
Book TitleSambodhi 2000 Vol 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages157
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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