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________________ 96 पारुल मांकड SAMBODHI अतिशयोक्ति ही है। ‘पर्वतविशेष' (= सुवेल) का निरूपण होने से अनुभूयमान महात्म्यातिशय का ही एक भेद है। ___ .... सोऽयमनुभूयमानमाहात्म्यातिशयस्यैव भेदोऽनुभवातिशय उच्यते । (पृ. ५४२) सेतु. में तिहुअणहरणपखिड्डिएण पाठ है। (भारतीय विद्या. पृ. २५५) सा.मी. में भी गुणों की अतिशयोक्ति के लिए यह पद्य उद्धृत किया गया है। - (सा.मी. पृ. ११७ - सेतुतत्त्वचन्द्रिका । पृ. २७९) सा.मी. में सुवेलपर्वत के गुणों की अतिशयोक्ति बताई गई है। सेतुतत्त्वचन्द्रिका का में तुङ्ग पदको अनुचित बताया है । (पृ. २७२) सअलुज्जोइअवसुहे समत्थजिअलोअवित्थरन्तपआवे । ठाइण चिरं रविम्मि व विहाणपडिआ वि मइलदा समुरिसे ॥ (सेतु. ३/३१) सकलोद्योतितवसुधे समस्तजीवलोकविस्तीर्यमाण प्रतापे । तिष्ठन्ति न चिरं रवा विव विधानपतितापि मलिनता सत्पुरुषे । भोज क्रियागुणयोगनिमित्ता दृष्टान्तोक्ति (= साम्यालंकार का भेद) के उद्धरण-स्वरूप यह पद्य उद॒किंत करते हैं। यहाँ पर असाधारण सूर्य का दृष्टान्त दिया गया है, जिसमें क्रिया और गुण निमित्त है। डॉ. बसाक में ३२ क्रमांक है । (३/३२) वैसे इसमें अर्थान्तरन्यास का पुट भी है, क्योंकि सूर्य के दृष्टान्त से समर्थन किया गया है, सामान्य से विशेष का समर्थन है। सगं अपारिआयं कुत्थुहलच्छिविरहिअं महुमहस्सउरं । सुमरामि महणपुरओ अमुद्धचंदं च हरजडापब्भारं ॥२२ (सेतु. ४/२०) स्वर्गमपारिजातं कौस्तुभलक्ष्मीरहितं मधुमथनस्योरः । स्मरामि मथनपुरतोऽमुग्धचन्द्रं च हरजटाप्राग्भारम् ॥ इस पद्य को अभिनवगुप्त, भोज, हेमचन्द्र और सा.मी.कार उद्धृत करतें हैं। आलंकारिकों का यह प्रिय उद्धरण है। अभिनवगुप्त यहाँ अप्रस्तुतप्रशंसा मानतें हैं और इसमें वाच्य और व्यंग्य का प्राधान्य तुल्यरूपेण स्वीकार करते हैं। 'लोचन'में सगं० इत्यादि पद्य को स्पष्ट करते हुए वे बतातें हैं, कि इसमें नैमित्तिक की प्रतीति में निमित्त की प्रतीति अनुप्राणक रूप से प्रधान हो जाती है और इस तरह व्यंग्य-व्यंजक का प्राधान्य नहीं । बनता, किन्तु व्यंग्य और वाच्य की तुल्यप्रधानता बनती है ।२३
SR No.520773
Book TitleSambodhi 2000 Vol 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages157
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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