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सर्वानन्दसूरिकृत श्रीजगडूचरित महाकाव्य - समीक्षा
गोविन्दलाल शं. शाह
मध्यकालीन गुजरात में जिन जैन कविओं ने सस्कृत में साहित्य सर्जन किया इन में धनप्रभसूरि के शिष्य सर्वानन्दसूरि भी एक हैं । जगडूशाह या जगडूशा या सिर्फ जगडू नाम से सुविदित श्रीमाली श्रावक वणिक व्यापारी वि. सं. १४वीं शताब्दी में हो गये, जिन्हों ने साहस एव देश-विदेश के व्यापार से-खासतोर से कहा जाय तो समुद्र पार के जहाजी व्यापार से-धनसपत्ति अजित की थी। इस जैन श्रेष्ठी ने तत्कालीन कच्छ, काठियावाड, सिंध, गुजरात आदि प्रदेश में अकाल-दुर्भिक्ष के तीन-चार साल तक अपने निजी कोठारों में से अन्नदान देकर तथा द्रव्य, वस्त्र और पात्र का दान करके जनता की सेवा की थी । मरणासन्न मनुष्यों और पशुओं को जीवनधारण करने में सहायता की थी। जगडू ने कच्छ के भद्रेश्वर में जिनमन्दिरों का निर्माण करवाया था ।
जगडू के बारे में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं । इससे जगडू दन्तकथाप्रथित व्यक्ति (legendary figure) लगता है ।
वॉटसन 'काठियावाड गेझेटियर' में लिखते हैं कि इ. स. १५५९ (सं. १६१५) में जो अकाल पडा था वह 'जगडूशा का अकाल' कहा जाता है । राजकोट में आजी नदी के पूर्व तट पर जो मिनारे हैं वे 'जगडूशा के मिनारे' कहे जाते है । सर्वानन्दसूरि ने इस महाकाव्य में अकाल के जिन वर्षों का उल्लेख किया है इसके साथ यह समय का मेल नहीं है।
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जामनगर जिला में समुद्र तट पर हर्षदमाता याने हरसिद्धमाता का मन्दिर है इसके साथ जगडूशा की बलिदान की कथाएं जुडी हुई है इनका कोई निर्देश इस महाकाव्य में नहीं है ।
एक परम्परा अनुसार जगडूशा कच्छ के वागड प्रदेश में कंथकोट गाँव के थे और भद्रेश्वर नगर में आकर बसे थे । अन्य परम्परा जूनागढ के गीर प्रदेश को जगडूशा का जन्मस्थान मानती है।
महान धर्मात्मा, शरवीर, दीर्घदृष्टि सपन्न, उदार दाता, अहिंसा के आराधक, भाग्यवान सेठ जगडू को नायक बनाकर सर्वानन्दसूरि ने 'श्रीजगडूचरित' नामक ऐतिहासिक महाकाव्य लिखा है जिस में सात सर्ग और ३८८ श्लोक हैं ।
ब्यूलेर के हस्तप्रत विषयक रिपोर्ट २/२८४ में इस ग्रथका निर्देश है । ब्यूलर ने इस चरित काव्य के ऐतिहासिक अश, अपनी टिप्पणी के साथ प्रकाशित किये हैं। मोहनलाल डी देसाई के अनुसार विसलदेव के समय सवत् १३१२ से १३१५ में जबर दुष्काल पडा, उस वक्त कच्छ के भद्रेश्वर के श्रीमाली जैन जगडूशाह ने सिंध, काशी, गुजरात आदि देशों में बहुत अन्न देकर दानशालाएँ शुरू की थी और तीन साल तक दुष्काल का सकट का निवारण किया था ।