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________________ 106 स्थूल शरीर से सूक्ष्म की यात्रा स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर की काश अपने आप में बड़ी महत्त्वपूर्ण है। यह शरीर स्थूल है, यह सूक्ष्म कोशिकाओं (Biological cells) से निर्मित है। लगभग साठ-सत्तर खरब कोशिकाएँ है । सुई की नोक में ? अनन्त जीव ! रत्नलाल जैन इन कोशिकाओं को जैनदर्शन के प्रतिपादन के सन्दर्भ में समझें कि सूई की नोक टिके उतने से स्थान में निगोद के अनन्त जीव समा सकते हैं। निगोद वनस्पति का एक विभाग है - यह सूक्ष्म रहस्यपूर्ण बात है पर आज का विज्ञान भी अनेक सूक्ष्मताओं का प्रतिपादन करता है। शरीर में खरबों कोशिकाएँ है, उन कोशिकाओं में गुण सूत्र होते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र दस हजार जीन से बनता है। वे सारे संस्कार-सूत्र हैं । हमारे शरीर में 'छियालीस ' क्रोमोसोम होते हैं । वे बनते है जीन से संस्कार सूत्रों से संस्कार-सूत्रों से एक क्रोमोसोम बनता है। संस्कार-सूत्र सूक्ष्म है; जीन सूक्ष्म है। SAMBODHI कर्म परमाणु के संवाहक कर्मवाद मनोविज्ञान से एक चरण और आगे है। कर्म परमाणु का संवहन करते है। व्यक्तिगत भेद का मूलकारण है कर्म सारे विभेद कर्मकृत हैन । 1 प्रत्येक जैविक विशेषता के लिए कर्म उत्तरदायी होता है। आनुवंशिकता जीन, रासायनिक परिवर्तन-कर्म के सिद्धान्त : यदि तुलनात्मक दृष्टि से सिद्धान्त कर्म के ही सिद्धान्त हैं। का अवयव है। दोनों शरीर से जुड़े हुए हैं। - सूक्ष्मतर शरीर कर्मशरीर है 'कर्म बनाम जीन' यह तथ्य भी अनुसन्धान में आ जाएगा कि जीन नहीं करते किन्तु ये हमारे किए हुए कर्मों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं । ३० २. महापुराण देखा जाए तो आनुवंशिकता, जीन और रासायनिक परिवर्तन- ये तीनों जीन हमारे स्थूल शरीर का अवयव है और कर्म हमारे सूक्ष्मतर शरीर एक स्थूल शरीर से और दूसरा सूक्ष्मतर शरीर से यह अनुसन्धान का विषय महाप्रज्ञजी लिखते है एक दिन केवल माता-पिता के गुणों या संस्कारों का ही संवहन अतः उपर्युक्त विवेचन का निष्कर्ष है कि 'जीन बनाम कर्म' शोध का एक महत्त्वपूर्ण विषय टिप्पणो : ★ पता-गली आर्य समाज हाँसी - १२५०३३ (हिसार) १. कर्मवाद पृ० २३५, युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ. विधि, स्रष्टा विधाता च दैवं कर्म पुराकृतम् । ईश्वर ईश्वरश्चेति पर्यायाः कर्मवेधसः ॥ ३. नीतिशतक ९२, भर्तृहरिः ब्रह्मा येन कुलालवन्नियमितो ब्रह्माण्डभाण्डोदरे, विष्णुर्वेन दशवाहले सिनो मासतुरे ।
SR No.520770
Book TitleSambodhi 1996 Vol 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages220
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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