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________________ मन्त्रार्थघटन में यास्क एवं वेङ्कटादिभाष्यकारों का वैचित्र्य । भारती सत्यपाल भगत प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का आदि स्रोत वेद है। परन्तु महर्षि अरविन्द ने वेद को “परमेश्वर के रहस्य को प्रकाशित करनेवाला परमोदात्त काव्य" कहा है। ऐसे वेद की विचारधारा को, उसके अर्थगौरव को समझने के लिए हमें उसके टीकाकारों का आश्रय लेना पडेगा। यास्क. स्कन्दस्वामी. वेङकटमाधव. सायण इत्यादि भाष्यकारों ने वेदार्थ स्पष्टीकरण का एक उत्तम नमूना हमें दिया है। जिसकी सहाय से हम वेद के मन्त्र को समझ सकते है। यास्क ने अपने निरूकत में वेद के अन्य टीकाकारों का उल्लेख किया है। इससे हमे यह मालूम होता है कि नैरुक्तपक्ष, याज्ञिकपक्ष, ऐतिहासिकपक्ष इत्यादि विचारधारा को प्रगट करनेवाले और भी विद्वान थे। हमारा कमभाग्य है कि वे सब आज उपलब्ध नहीं है। यास्क वेद के अर्थ का स्पष्टीकरण कौन नहीं कर सकता है इसी सन्दर्भ में कहते है कि जो आदमी न तो ऋषि है कि न तो तपस्वी है, वह मन्त्रो के अर्थो का साक्षात्कार नहीं कर सकता। अत: उन्होंने कहा है कि मन्त्र के अर्थ की विचारणा परंपरागत अर्थ का श्रवण कर के तर्क से निरूपित की गई है। अर्थात् मन्त्रों की व्याख्या पृथक पृथक् करने का छोड़कर प्रकरणानुसार ही करना चाहिए। वेदार्थघटन की प्रक्रिया में यास्क अत्यंत सावधान है। सायण भी अपने वेदभाष्य में महत्वपूर्ण प्रत्येक शब्द की व्युत्पत्ति, सिद्धि और स्वरादि का वर्णन करते हैं। और पाणिनीयसूत्रों, प्रातिशाख्य और निरूक्त का प्रयोग करते है। सायण क्वचित् यास्क के अर्थघटन को शब्दश: स्वीकार करते है। स्कन्दस्वामी तथा वेङ्कटमाधव जैसे प्राचीन भाष्यकार भी शास्त्रोक्त अर्थघटन का यथावकाश स्वीकार करते है। मन्त्राघटन में यह ध्यानास्पद है कि विविध भाष्यकारों ने एक ही मन्त्र का अलग अलग ढंग से अर्थघटन किया है। उदाहरणरूप से एक ही वेदमन्त्र के विविध अर्थधटनों का अभ्यास यहां प्रस्तुत किया है। ऋग्वेद के चतुर्थमण्डल में प्राप्त होता यह मन्त्र देखिए - चत्वारि शृङ्गा त्रयो अस्य पादा ... द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य। त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो महँ आ विवेश ॥ ऋग्वेद (४/५८/३) इस (वृषभ) के चार सींग है, तीन पाद है, दो मस्तक है और सात हस्त है। तीन स्थान पर बांधा गया वह वृषभ आवाज करता है, वह महान् (वृषभ) देव मर्त्यप्राणीओं में प्रविष्ट हुआ है। अब विविध भाष्यकारों द्वारा प्रदर्शित अर्थवैविध्य की समीक्षा करेगें। इस वेदमन्त्र में वृषभ के सन्दर्भ में ही बात है। जैसे कि वृषभ के चार शींग है, तीन पाद है, दो मस्तक है, सात हाथ युक्त, तीन बाजु हुआ वृषभ आवाज करता है। लेकिन यहाँ संशय पेदा होता है कि वृषभ के तीन पैर कैसे हो सकते है, और सात
SR No.520769
Book TitleSambodhi 1994 Vol 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1994
Total Pages182
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size6 MB
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