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... देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में पंडितजी ने जैन, बौद्ध एवं भारतीय दर्शन
पर अनेक बार व्याख्यान दिये हैं । सन् १९७७ में पेरिस में सम्पन्न अन्तराष्ट्रीय संस्कृत परिषद के ततीय अधिवेशन में विशेष आमंत्रण पर सम्मिलित होकर पंडितजी ने 'भरत बाहबली की कथा के विकास पर अत्यन्त सारगर्भित एवं विद्वतापूर्ण निबन्ध का पाठ किया जिसकी भूरि-भूरि प्रसंसा की गई । फलत: पेरिस यूनिवर्सिटी में विशेष अनुरोध पर पन्द्रह दिन तक रहे ।
सन् १९६८-६९ में कनाडा के टोरन्टो विश्वविद्यालय में डेढ़ वर्ष तक भारतीय एवं बौद्ध दर्शन तथा उपमितिभव-प्रपंचकथा का विशेष अध्यापन कार्य किया ।
___ संस्कृत के प्रखर विद्वान होने कारण सन् १९८४ में महामान्य राष्ट्रपति ने पंडितजी को राष्ट्रपति भवन में अलंकरण प्रदान कर सम्मानित किया । सन् १९९० में जैन विश्वभारती द्वारा आपको 'जैन विद्या मनीषी' की उपाधि से अलंकृत किया गया ।
जैन वाङ्गमय की विशिष्ट सेवा के उपलक्ष्य में अनेक संस्थाओं ने पंडितजी को स्वर्ण पदक एवं मानद उपाधियाँ प्रदान कर सम्मानित किया है।
दिनास ८-९ दिसम्बर १९९० को बैगलोर में सम्पन्न प्रथम राष्ट्रीय प्राकृत सम्मेलन के अवसर पर इन प्राकृत विद्वानों को प्राकृत ज्ञान भारती अलंकरण से सम्मानित किया गया जिसमें पंडितजी प्रमुख हैं।
एक अत्यंत साधारण परिवार में उत्पन्न दलसुखभाई अपने चार भाई एवं एक बहिन में सबसे बड़े हैं । २२ जुलाई, १९१० को सौराष्ट्र के झालावाड़ जिले के सायला ग्राम में इनका जन्म हुआ । उनके पूर्वज मालवण ग्राम में रहने के कारण ये मालवणिया कहलाये । भावसार गौत्रीय श्री दलसुखभाई. के पिता का नाम हाह्याभाई एन माता का नाम पार्वतीबहिन था ।
'दलसुखभाई ने सुरेन्द्रनगर में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् बीकानेर, ब्यावर, जयपुर, अमदाबाद, शान्तिनिकेतन आदि स्थानों पर पंडित बेचरदासजी दोशी, महामहोपाध्याय श्री विधुशेखर शास्त्री भट्टाचार्य, मुनिश्री जिनविजयजी जैसे प्रख्यात विद्वानों एवं मनीषियों के सान्निध्य में रहकर जैन आगमो, शास्त्रों तथा संस्कृत, प्राकृत, पालि, अपभ्रंश आदि भाषाओं के साथ बौद्ध एवं भारतीय दर्शन का गहन अध्ययन किया एवं विशेष ज्ञान प्राप्त किया । सन् १९३१ में जैन विशारद' एव' न्यायतीर्थ' की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की।
प्रचल पुरुषार्थी, अथक अध्यवसायी एव प्रखर प्रतिभा सम्पान जैन मनीषी पंडित दलसुखभाई मालवणिया को भारत सरकार ने पद्मभूषण खिताब से अलंकृत किया है, इससे हम सब गौरव की अनुभूति कर रहे हैं।
[2] PAhimsa पंत्रिका से उधृ] AN UNRIVALLED SCHOLAR
Pandit Dalsukh Malvania has been one of the few present-day interationally acknowledged authorities on the history and development of