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AWARD OF PADMABHUSHAN TO PANDIT DALSUKH MALVANIA
A function was organized by the L. D. Institute of Indology on 16th Feb. 1992 to felicitate, Pandit Dalsu kh Malvania, the Institute's academic founder and cx-Director for being honoured this year with the award of Padmabhushan by the Government of India. The function was chaired by Sheth Shrenikbhai, the Sccrctory of the Managing Board of the Institute, several scholars and admirers of Panditji including Shri Shrenikbhai and Atmarambhai Sutaria paid warm and reverential tributes to him. In his response Panditji voiced his concern regarding the acceleratingly waning interest in the area of Prakrit Studies and Jainology.
A brief note on Malvaniajis as a scholar, aeademician and person follows,
पद्मभूषण से अलंकृत जैनदर्शन के प्रकाण्ड पंडित दलसुखभाई मालवणिया
संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि प्राच्य भाषाओं के निष्णात पंडित मालवणियाजी जैन एवं बौद्ध आगमों के साथ वैदिक वाङ्गमय के गहन अध्येता है । सत्यशोधक ज्ञानोपासक के रूप में पंडितजी देश-विदेश में विख्यात हैं । श्री मालवणिया जी वस्तुत: सिद्धहस्त सरस्वती पुन हैं। हंस की नीरक्षीर-दृष्टि सम्पन्न श्री मालवणियाजी सर्वदर्शन समभाव के सहज विश्वासी हैं एवं वर्तमान की विषमतामूलक एव भेदजनक दृष्टि से अति खिन्न हैं।
सौम्य व्यक्तित्व के धनी श्री दलसुखभाई का जीवन अत्यन्त सरल, निर्मल और सहज है। अगाध विद्वता सम्पन्न पंडितजी अत्यन्त सज्जन हैं । लगता है प्रखर पाण्डित्य एवं सहज सौजन्य प्रतिस्पर्धी बनकर इनके व्यक्तित्व में इस तरह समाये हुए हैं जैसे चन्दन में शीतलता एव' सुवास ।
अनेक ग्रन्थों एव शताधिक शोध निबन्धों के रचयिता, सम्पादक एवं प्रणेता पंडितजी अत्यन्त स्पष्ट वक्ता हैं । बेहिचक सच्चाई को प्रकट करने में पंडितजी अपना सानी नहीं रखते । लगता है जैन एव' भारतीय दर्शन के भीष्म पितामह पंडित सुखलालजी इनके व्यक्तित्व में अपनी पूरी गरिमा एवं प्रभा से अभिव्यक्त हैं।
अनेक जैन अजैन संस्थाओं से सम्बद्ध पंडितजी भारत के आधे दर्जन से अधिक विश्वविद्यालयों में पीएच.डी. के परीक्षक हैं । अनेक विख्यात संस्थाओं के मानद पदाधिकारी, परामर्शदाता एवं सदस्य हैं । सन् १९७४ में भगवान् महावीर के २५०० वे निर्वाण महोत्सव के अवसर पर 'दर्शन साहित्य' के सनन हेतु पंडितजी को सिद्धान्त भूषण' की मानद उपाधि से विभूषित कर स्वर्ण पदक तथा २५००) रूपये का पुरस्कार वीर निर्वाण भारती, दिल्ली ने प्रदान किया । सन् १९७६ में भारत जैन महामण्डल ने हैदराबाद अधिवेशन में