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________________ दोहा-उपहार my.... ____ जे कोई रीते लख्यो लखाय तेम नथी, को कहेवाय तेम नथी, कीधेलो कोईने चित्तमा रहेतो नथी, ते गुरु-उपदेशथी चित्तमां दृढ थाय छे. तेवी रीते तेने धारण करतां बधे रहेल छे. ___ १६६ . समुद्रे धक्केलेला पाणीने नदीन पाणी खेचे छे, भारे जहाजने पवन हिलोळे चडावे छे तेम ज बोध अने विबोध अथडाय छे त्यारे बीजी ज वात बनवा लागे छे. १६७ आकाशमा विविध शब्दो जे संभकाय छे त्यां तेना पडघामां कोई दुर्विचार आवतो नथी, मन पांचे ( इन्द्रियो) साथे अस्त पामे छे. हे मूढ ! खरे त्यां ज परम तत्त्व रहेल छे. १६८ . अक्षय, निरामय, परमगतिमां आज सुधी लवलेश पण जाणतो नथी, मननी भ्रांति मांगी नथी. जेमतेम दहाडा गणे छे. .. ' हे जोगी ! स्वाभाविक भावमा जता ( मनरूपी ) ऊंटने रोक. अक्षय, निरामय, परमगतिमां मोकलेल ते पोतानो संहार पोते ज करशे. १७० । अक्षय, निरामय परमगतिमा मनने दबावीने मूकी दे. (तो) आवागमन( संसारभ्रमण )नी वेली तूटी जशे-तेमां शंका न कर. १७१ ..एम चित्तने अविचळ करीने आत्मानुं ध्यान कराय तो आठे कर्म हणीने सिद्धि-महानगरीमा जवाय. १७२ काळा अक्षर वांचतां वाचतां नाश पाम्या तो य एक परम विद्या न जाणी के क्यां ऊग्यो अने क्यां लीन थयो ! १७३ . (जेणे ) बे भांगीने एक कर्या', मननी वेलीने पोपी नहीं ते गुरुनी हु शिष्या छं. बीजानी खुशामत न करूं. १७४ आगळ, पाछळ, दशे दिशामां ज्यां जोउं त्या ते ज छे. त्यारे मारी भ्रांति मांगी. हवे कोईने पूछQ नथी, १७५
SR No.520766
Book TitleSambodhi 1989 Vol 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages309
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size10 MB
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