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रामसिंह-मुणि-विरइय बुज्झहु बुज्झहु जिणु भणइ को बुज्झउ हलि अण्णु । अप्पा देहहं णाणमउ छुड्डु बुज्झियउ विभिण्णु ॥४० वंदहु वंदहु जिणु भणइ को वंदउ हलि इत्थु । णियदेहाहं वसंतयहं जइ जाणिउ परमत्थु ॥४१ उपलाणहिं जोइय करहुलउ दावणु छोडहि जिम चरइ । जसु अखइ णिरामइं गयउ मणु सो किम बुहु जगि रइ करइ ॥४२ ढिल्लउ होहि म इदियह पंचहं विण्णि णिवारि । एक णिवारहि जीहडिय अण्ण पराइय णारि ॥४३ पंच बलद्द ण रक्खिय णंदणवणु ण गओ सि । अप्पु ण जाणिउ ण वि परु वि एमइ पव्व इओ सि ॥४४ पंचहिं बाहिरु णेहडउ हलि सहि लग्गु पियस्स । तासु ण दीसइ आगमणु जो खलु मिलिउ परस्स ॥४५ मणु जाणइ उवएसडउ जहिं सोवेइ अचितु । अचित्तहो चितु जो मेलवइ सो पुणु होइ णिचिंतु ॥४६ वट्टडिया अणुलग्गयहं अग्गउ जोयंताहं ।। कंटउ भग्गइ पाउ जइ भज्जउ दोसु ण ताहं ॥४७ मिल्लहु मिल्लहु मोकल्लउ जहिं भावइ तहिं जाउ । सिद्धिमहापुरि पइसरउ मा करि हरिसु विसाउ ॥४८ मणु मिलियउ परमेसरहो परमेसरु जि मणस्स । बिण्णि वि समरसि-हुइ रहिय पुज्ज चडावउं कस्स ॥४९ आराहिज्जइ काई देउ परमेसरु कहिं गयउ । वीसारिज्जइ काई तासु जो सिउ सव्वंगयउ ॥५० अम्मिए जो परु सो जि परु परु अप्पाण ण होइ । हउं उज्झउ सो उव्वरइ वलिवि ण जोवइ तो इ ॥५१ मूढा सयल्लु वि कारिमउ णिक्कारिमउ ण कोइ ।। जीवहु जंत ण कुडि गइय इउ पडिछंदा जोइ ॥५२ देहादेवलि जो वसइ सत्तिहिं सहियउ देउ । को तहिं जोइय सत्तिसिउ सिग्घु गवेसहि भेउ ॥५३