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रामसिंह-मुणि-विरझ्य दोहा-पाहुड
गुरु दिणयरु गुरु हिमकरणु गुरु दीवउ गुरु देउ । अप्पापरहं परंपरहं जो दरिसावइ भेउ ॥१ अप्पायत्तउ जं जि सुहु तेण जि करि संतोसु । परसुहु वढ चितंतहं हियइ ण फिट्टइ सोसु ॥२ जं सुहु विसयपरंमुहउ णिय अप्पा झायंतु । सं सुहु इंदु विण उ लहइ देविहिं कोडि रमंतु ॥३ आभुंजता विसयसुह जे ण वि हियइ धरंति । ते सासयसुहु लहु लहहिं जिणवर एम भणंति ॥४ ण वि भुंजता विसयसुह हियडइ भाउ धरति । सालिसित्थु जिम वप्पुडउ णर णरयह णिवडंति ॥५ आयई अडवड वडवडइ पर रंजिज्जइ लोउ । मणसुद्धई णिच्चलठियइं पाविज्जइ परलोउ ॥६ धंधई पडियउ सयलु जगु कम्मई करइ अयाणु । मोक्खहं कारणु एकु खणु ण वि चितइ अप्पाणु ॥७ जोणिहि लक्खहिं परिभमइ अप्पा दुक्खु सहंतु । पुत्तकलत्तइं मोहियउ जाम ण वोहि लहंतु ॥८ अण्णु म जाणहि अप्पणउ घरु परियणु तणु इछ । कम्मायत्तउ कारिमउ आगमि जोइहिं सिटु ॥९ जं दुक्खु वि तं सुक्खु किउ जं सुहु तं पि य दुक्खु । पइं जिय मोहहिं वसि गयइं तेण ण पायउ मुक्खु ॥१० मोक्खु ण पावहि जीव तुहुं धणु परियणु चितंतु । तो इ विचिंतहि तउ जि. तउ पावहि सुक्खु महंतु ॥११