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________________ 5. मध्यवर्ती त को सर्वत्र त श्रुति मानकर उसका लोप नहीं किया जाना चाहिए । 6. मध्यवर्ती त और थ का क्रमशः कभी द और ध मिले तो उसे प्राचीनता का लक्षण माना जाना चाहिए । कभी कभी द का त मिले तो उसे भी प्राचीन और उसके लोप के पहले की प्रवृत्ति मानी जानी चाहिए । 7. कभी कभी पालि की तरह ळ मिले तो उसे ड में बदलने का नियम नहीं होना चाहिए (देखिए आ. श्री हेमचन्द्र द्वारा दिया गया उद्धरण, सूत्र न. 8.1.7 की वृत्ति में 'कळम' शब्द और पिशल (304,379) द्वारा दिये गये उदाहरण, लेलु, लेळुसि) । 8. प्रारंभिक नकार को प्राथमिकता देनी चाहिए और अध्ययन का नकार ही रखा जाना चाहिए (जैसी की शुबिंग महोदय की पद्धति रही है)। 9. मध्यवर्ती न मिले तो उसका सर्वत्र ण बनाना जरूरी नहीं समझा जाना चाहिए । 10. संयुक्त व्यंजनों में समीकरण के बदले स्वरभक्ति का पाठ मिले तो उसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जैसे-द्रव्य : दविय, नित्य = नितिय, तथ्य = तथिय, अग्नि - अगणि, उष्ण = उसिण । 11. कु. और . को सजातीय व्यंजनों के साथ संयुक्त रूप में यथावत् रखा जाना चाहिए, उन्हें अनुस्वार में सर्वत्र बदलने की पद्धति पर भार नहीं दिया जाना चाहिए । 12. संयुक्त अमिले तो उसे त्याज्य नहीं माना जाना चाहिए । 13. संयुक्त व्यंजन ज्ञ, न्न और न्य का शुनिंग महोदय की तरह न्न किया जाना चाहिए । 14. अहेत् का अरहा या अरहन्त, आत्मन् का अत्ता या आता; क्षेत्र का खेरतन्न ये सब प्राचीन रूप हैं अत: ऐसे रूपों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए । 15. पुरस् का पुरे की तरह अघस् का अघे रूप मिले तो उसे रखा जाना चाहिए । 16. अकारान्त पुंलिंग प्रथमा एकवचन की -ए विभक्ति यदि मिले तो बदले में-ओ नहीं की जानी चाहिए। 17. नपुंसकलिंगी शब्दो में प्रथमा एवं द्वितीया के बहुवचन में यदि -णि विभक्ति मिले तो रखी जानी चाहिए । 18. तृ. ए. व. की विभक्ति के लिए यदि -सा प्रत्यय मिले तो रखा जाना चाहिए (कायसा, पन्नसा)। 19. तृ.ब. व. की विभक्ति-भि मिले तो-हि में नहीं बदली जानी चाहिए (जैसे-थीभि, पसूभि) । 20. अकारान्त शब्दों में चतुर्थी ए.व.के लिए प्रयुक्त-आए विभक्ति को बदलना नहीं चाहिए । 21. संस्कृत के नामिक -सार्वनामिक रूपों में पंचमी में जहाँ अकारान्त शब्द में अन्त में -अ: आता है उसके बदले में प्राकृत में यदि-ए मिले तो उसे बदला नहीं जाना चाहिए।
SR No.520766
Book TitleSambodhi 1989 Vol 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages309
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size10 MB
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