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________________ ४६ संयुक्त के समीकरण के बदले उनमें से एक व्यंजन का अनुस्वार में बदलने की प्रवृत्ति बाद की मानी जाती है (मगस्सिला + मणसिला) । 8. सूत्र न. 82.17 में क्ष = च्छ समझाया गया है । वृत्ति में कहा गया है आप इक्खू, खीरे, सारिक्खमित्याद्यपि दृश्यन्ते । अर्थात् क्ष का क्ख भी होता। अशोक के. शिलालेखों में यह पूर्वी क्षेत्र की प्रवृत्ति है । अन्य क्षेत्रों में छ मिलता है। बाद में क्ष का सभी जगह च्छ और क्ख एक साथ मिलता है (महेण्डले, पृ. 217) | 9. सूत्र न. 8.1 57 की वृत्ति में 'आर्षे पुरेकम्म' का उदाहरण दिया गया है। यह अस् = ए यानि पुरः = पुरे है । इसी तरह ही अः = ए की प्रवृत्ति पूर्वी भारत को रही है । अशोक के शिलालेखों में प्रथमा ए. व. के अलावा षष्ठी एवं पंचमी ए. व. के व्यंजनांत शब्दों में जहाँ अकारान्त के बाद अन्त में विसर्ग आता है वहाँ पर -ए भी मिलता है । इसिभासियाई में नामते (नामतः) प्रयोग मिलता है (अध्याय 22 और 31) । 10. अकारान्त पु. प्र. ए. व. की -ए विभक्ति (सूत्र 8.4.287 की वृत्ति के अनुसार) अर्धमागधी भाषा की प्रमुख लाक्षणिकता है जो पूर्वी भारत की भाषाकीय विशेषता रही है। 11. ब्रू धातु के रूप :अब्बबी (अब्रवीत्) भूतकाल के -सी, -ही, ही प्रत्यय देते समय वृत्ति में आर्ष के लिए 'अब्बवी' रूप दिया है -आष देविन्दो इणमब्यवी, 8.3.162 की वृत्ति । वर्त, काल के बेमि (मि) का उदाहरण स्वराणां स्वरा: (8.4.238) के सूत्र की वृत्ति में दिया गया है (आप बेमि) . ये दोनों रूप अति प्राचीन हैं और प्राचीनतम प्राकृत साहित्य में ही प्रायः मिलते हैं । अर्वाचीन प्राकृत साहित्य में ऐसे रूप नहीं मिलेंगे दिखिए विशल और गाइगर)। प्राचीन पालि में भी ऐसे ही प्रयोग मिलते है । 12. सूत्र नं. 8.1.206 में (क. भू. कृदन्त प्रत्यय) -त का -ड होना समझाते समय वृत्ति में कहा गया है कि आर्षे कृत का कड हो जाता है, दुक्कड, सुकडं, आहर्ड, अवहडं। यह प्रवृत्ति भी अशोक कालीन शिलालेखों में मिलती है-कृत कट | इसी ट का बाद में घोष होकर ड बन गया है । 13. संबंधक भूतकृदन्त के उदाहरण देते समय सूत्र न. 8.2.146 की वृत्ति में कहा गया है कट्ठ इति तु आर्षे, अर्थात् -१ प्रत्यय । यह विशेषता अशोक कालीन पूर्वी क्षेत्र की है। अन्य क्षेत्रो में 'त्त' प्रत्यय मिलता है। इन सभी विशेषताओं को सूत्रबद्ध करके क्या अन्य प्राकृतों की तरह उन्हें एक जगह व्यवस्थित नहीं रखा जा सकता था जबकि अन्य प्राकृतों की एकल दोकल विशेषताएँ भो सूत्रबद्ध करके समझायी गयी हैं । उदाहरणार्थ :--
SR No.520766
Book TitleSambodhi 1989 Vol 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages309
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size10 MB
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