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________________ इन किया है। इनमें एक उल्लेख उसकी मुख्य विशेषता के बारे में है अर्थात् अकारान्त पुं. प्र. ए. व. के लिए -ए विभक्ति के बारे में है । इसके सिवाय नाम विभक्तियों के बारे में दो और उल्लेख है । काल तथा कृदन्त के विषय में एक एक उल्लेख है जबकि अन्य उल्लेख अधिकतर ध्वनि-परिवर्तन के विषय में हैं। इन विशेषताओं के लिए जो भी उदाहरण दिये गये हैं उनसे यही स्पष्ट होता है कि अर्धमागधी एक प्राचीन प्राकृत भाषा थी । उदाहरणों के रूप में : 1. शब्द के प्रारंभिक य का अ । सूत्र है - आदेो जः (8.1.245 य = ज) परंतु-आर्षे लोपोऽपि । उदाहरण :- अहक्ख.यं, अहाजायं । अशोक के शिलालेखों में भी ऐसी ही प्रवृत्ति मिलती है। आदि य का न बहुत बाद को प्रवृत्ति है (मेहेण्डले, पृ. 274) । अर्धमागधी में यथा और यावत् अव्ययों में यह प्रवृत्ति मिलती है। 1. श्रीमती नीति डोल्चीने जिन सूत्रों का उल्लेख किया है उनमें एक सूत्र 8.3.137 और जोड़ा जाना चाहिए । देखिए The Prakrit Grammarians, p. 180, f.n. 1(1972) हेमचन्द्र के व्याकरण में विभिन्न सूत्रों की वृत्ति में विषय इस प्रकार है सूत्र-संख्या सूत्र-संख्या विषय आषम् स्वरपरिवर्तन अः का परिवर्तन प्रारम्भिक असंयुक्त व्यंजन मध्यवर्ती असंयुक्त व्यंजन प्रारंभिक संयुक्त व्यंजन मध्यवर्ती संयुक्त व्यंजन विषय अंतिम व्यंजन अध्यय निपात नामविभक्ति विभक्ति-व्यत्यय भूतकाल कृदन्त कुल 31 सूत्र सूत्र नं. I. 3, 26, 46, 57, 79, 118, 119, 151, 177, 181, 206, 228, 245, 254 (14) II. 17, 21, 86, 98, 101, 104, 113, 120, 138, 143, 146, 174, (12) III. 162, IV. 238, 283, 287 (3)
SR No.520766
Book TitleSambodhi 1989 Vol 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages309
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size10 MB
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