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________________ 25 उलहना पाकर हेमचन्द्र की प्रसुप्त आध्यात्मनिष्ठा पुन: जागृत हो गई थी । कुमारपाल ने जब हेमचन्द्र से अपनी कीर्ति का अमर करने का उपाय पूछा तो उन्होंने दो उपाय बताए (1) सोमनाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार और (2) समस्त देश को ऋणमुक्त करके विक्रमादित्य के समान अपना संवत् चलाना । कुमारपाल को दूसरा उपाय अधिक उपयुक्त लगा, किन्तु समस्त देश को ऋणमुक्त करने के लिए जितने धन की आवश्यकता थी, उतना उसके पास नहीं था. अत: उसने गुरु हेमचन्द्र से धन प्राप्ति का उपाय पूछा । इस समस्या के समाधान हेतु यह उपाय सोचा गया कि हेमचन्द्र के गुरु देवचद्रन्सूरि को पाटन बुलवाया जाए और उन्हें जो स्वर्णसिद्धि विद्या प्राप्त है उसके द्वारा अपार स्वर्ण राशि प्राप्त करके समस्त प्रजा को ऋणमुक्त किया जाए । राजा, अपने प्रिय शिष्य हेमचन्द्र और पाटन के शावकों के आग्रह पर देवचन्द्रसूरि पाटण आए, किन्तु जब उन्हें अपने पाटण बुलाए जाने के उद्देश्य का पता चला तो, न केवल वे पाटण से प्रस्थान कर गए अपितु उन्होंने अपने शिष्य को आध्यात्म साधना से विमुख हो लोकेषणा में पड़ने का उलाहना भी दिया और कहा कि लौकिक प्रतिष्ठा अर्जित करने की अपेक्षा परलौकिक प्रतिष्ठा के लिए भी कुछ प्रयत्न करो। जैमधर्म की ऐसी प्रभावना भी जिसके कारण तुम्हारा अपना आध्यात्मिक विकास ही कु ठित हो जाए तुम्हारे लिए किस काम की ? कहा जाता है कि गुरु के इस उलहने से हेमचन्द्र को अपनी मिथ्या महत्त्वाकांक्षा का बोध हुआ और वे अन्तर्मुख हो आध्यात्म साधना की ओर प्रेरित हुए 116 वे यह विचार करने लगे कि मैंने लोकेषणा में पड़कर न केवल अपने आपको साधना से विमुख किया अपितु गुरु की साधना में भी विधन डाला । पश्चात्ताप की यह पीडा हेमचन्द्रकी आत्मा को बारबार कचोटती रही, जो इस तथ्य की सूचक है कि हेमचन्द्र मात्र साहित्यकार या राजगुरु ही नहीं थे अपितु आध्यात्मिक साधक भी थे। वस्तुतः हेमचन्द्र का व्यक्तित्व इतना व्यापक और महान है कि उसे समग्रतः शब्दों की सीमा में बाँध पाना सम्भव नहीं है । मात्र यही नहीं उस युग में रहकर उन्होंने .' जो कुछ सोचा और कहा था वह आज भी प्रास'गिक है । काश हम उनके महान व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर हिंसा, वैमनस्य, सघर्ष की वर्तमान त्रासदी से भारत को बचा सके । 16. हेमचन्द्राचार्य (प. वेचरदास दोशी) पृ. 13-178
SR No.520765
Book TitleSambodhi 1988 Vol 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1988
Total Pages222
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size5 MB
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