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________________ 24 सद्धान्तिक ग्रन्थों में उन्होंने संस्कृत भाषा के साथ-साथ प्राकत और अपभ्रश के उपेक्षित । व्याकरण की भी चर्चा की। इन सिद्धान्तों के प्रायोगिकपक्ष के लिये उन्होंने सांस्कत-प्राकत . में व्याश्रय जैसे महाकाव्य की रचना की है। हेमचन्द्र मात्र साहित्य के ही विद्वान नहीं थे अपितु धर्म और दर्शन के क्षेत्र में भी उनकी गति निधि थी । दर्शन के क्षेत्र में उन्होंने अन्ययागव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, अयोगव्यवच्छेद्वात्रिंशिका और प्रमाणमीमांसा जैसे प्रौढ़ ग्रन्थ रचे तो धर्म के क्षेत्र में योगशास्त्र जैसे साधनाप्रधान ग्रन्थ की भी रचना की। कथा साहित्य में उनके द्वारा रचित त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित का अपना विशिष्ट महत्त्व है। हेमचन्द्र ने साहित्य, काव्य, धर्म और दर्शन जिस किसी विद्या को अपनाया उसे एक पूर्णता प्रदान की है । उनकी इस विपुल साहित्यसर्जना का ही परिणाम था कि उन्हें कलिकालसर्वज्ञ की आधि प्रदान की गयी। - अब साहित्य के क्षेत्र में मचन्द्र के अवदान को समझने के लिए उनके द्वारा रचित ग्रन्थों का किंचित् मूल्यांकन करना होगा । यद्यपि हेमचन्द्र के पूर्व व्याकरण के क्षेत्र में .. पाणिनीय व्याकरण का अपना महत्त्व था । उस पर अनेक वृत्तियां और भाष्य लिखे गये ।। फिर भी वह विद्यार्थियों के किये दुर्बोध ही था। व्याकरण के अध्ययन एव' अध्यापन की नई, सहज एवं बोधगम्य प्रणाली में जन्म देने का श्रेय हेमचन्द्र को हैं । यह हेमचन्द्र का । ही प्रभाव था कि परवती काल में ब्राह्मण परम्परा में इसी पद्धति को आधार बनाकर ग्रन्थ लिखे गये और पाणिनी के अष्टाध्यायी की प्रणाली पठन-पाठन से धीरे-धीरे उपेक्षित हो गयी । हेमचन्द्र के व्याकरण की एक विशेषता तो यह है कि आचार्य ने स्वयं उसकी वृत्ति में कतिपय शिक्षा सूत्रों को उधृत किया है। उनके व्याकरण की दूसरी विशेषता यह है कि उनमे संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत के व्याकरण भी दिये गये हैं। व्याकरण के समान ही उनके कोशग्रन्थ, काव्यानुशासम और छदानुशासन जैसे साहित्यिक सिद्धान्त ग्रन्थ भी अपना महत्त्व रखते हैं। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित और परिशिष्टिपत्र के रूप में उन्होंने जैनधर्म की पौराणिक और ऐतिहासिक सामग्री का जो सांकलन किया है, वह भी निश्चय ही महस्वपूर्ण है। यहां उनकी योगशास्त्र, प्रमाणमीमांसा आदि सभी कृतियों का मूल्यांकन भी सम्भव नहीं । किन्तु परवर्ती साहित्यकारों द्वारा किया गया उनका अनुकरण इस बात को सिद्ध करता है कि उनकी प्रतिभा से न केवल उनका शिष्यमडल अपितु परवर्ती जैन या जैने तर वेद्वान भी प्रभावित हुए । मुनि श्री पुण्य वेजयजी ने हेमचन्द्र की समन कतियों का. . जो इलोकपरिमाण दिया है, उससे पता लगता है कि उन्होंने लगभग दो लाख इलोकपरिमाण साहित्य की रचना की है. ओ उनकी सर्जनधर्मिता के महत्त्व को स्पष्ट करती है। साधक हेमचन्द्र हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि एक महान साहित्यकार और प्रभावशाली राजगुरु होते हुए भी मूलतः हेमचन्द्र एक आध्यात्मिक साधक थे । यद्यपि हेमचन्द्र का अधिकांश जीवन साहित्य सृजना के साथ साथ गुजरात में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार तथा वहां की राजनीति में अपने प्रभाव को यथावत् बनाए रखने में बीता, किन्तु कालान्तर में गुरु से.
SR No.520765
Book TitleSambodhi 1988 Vol 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1988
Total Pages222
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size5 MB
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