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. रूपेन्द्रकुमार पगारिया
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मुनिचन्द्रसूरि से देवसूरि की परम्परा चली । श्री बुध्धिसागरसूरि से श्रीमालीगच्छ निकला । तथा श्री मलयचन्द्रसूरि से भाशापहली गच्छ चला ।
श्री जयचन्द्रसूरि के शिष्य विजयचन्द्रोपाध्याय ने अपने मामा शीलगुणसूरि के साथ पूनमिया गच्छ स्वीकार किया । उन्होंने भागम ग्रन्थों का सविशेष अध्ययन किया। भा. जयचन्द्रसूरि इन्हें गच्छाचार्य के पद पर अधिष्ठित करना चाहते थे। उस समय उनके गच्छ मैं मालारोपन आदि अनेक शास्त्र विरूद्ध परम्पराएँ प्रचलित थी । उन्हें शास्त्र विरुद्ध प्रवृत्तियां अच्छी नहीं लगती थी। अतः उन्होंने भाचार्य पद लेने से इनकार कर दिया । तब उन्हें उपाध्याय पद से विभूषित किया । मुनिचन्द्र सूरि एवं विजयचन्द्रोपाध्याय एक ही गुरु के शिष्य थे |
विजयचन्द्रोपाध्याय के शिष्य यशचन्द्रगणि थे। उन्हें मुनिचन्द्रसूरि के सांभोगिक रामदेवसूरि ने पावागढ के समीप मन्दारपुर में भ पार्श्वनाथ के मन्दिर में श्री चन्द्र भादि अवकों ने तथा बडोदरा, खंभात आदि के संचों ने वि. सं. 1202 में आचार्य पद पर अधिष्ठित किया । और उनका नाम जयसिंह सूरि रखा।
वि. सं. 1169 विजयचन्द्रोपाध्याय ने विधिपक्ष की स्थापना की। विजयचन्द्रोपाध्याय का जन्म सं 1136, दीक्षा सं. 1142, स्वर्गवास 1226 . श्री जयसिंहमूरि जन्म 1179/1197 में दक्षा /1202 भाचार्यपद। 1258 स्वर्गवास ।
प्रथम शतपदी के कर्ता धर्मघोष सूरि का जन्म 1208 | दीक्षा 12161 आचार्यपद 12341 स्वर्गवास 12681 इत्यादि
इस प्रकार शतपदिका प्रश्नोत्तर पञ्चति ग्रन्थ धार्मिक सामाजिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से बडा महत का है।