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________________ भरवि कुमार सिंह १२ १०. पनुअल रिपोर्ट आन इण्डियन पपिग्राफी फार १९६९-७० (षी २०८) ग़ै जिनभद्राचार्य को लेखक बताया गया है । १८. उपर कथित, पृ. ९-१० । १९. यह और आगे की, पद्म के चरण के बीच में आयी एक या दो लकीरें अनावश्यक हैं । सम्भवता प्रशस्ति के दाहिने छोर को समान रखने के लिए इन्हें खोदा गया है । २०. शममृत पढ़ें । २१. जैन नागरी का अक्षर छ । २२. अलंकरण चिह्न | स्मारिका अजति सहस्त्राक्षः नमति FREE फर्णीन्द्र : स्मरपर से लक्षणीर्योक्षि उनि शिपु कर्मव स्फुटायामा भूराममूर्त पद कान्ता पोष्माकीण प्रभावाद् कुरूतः विरागं रक्षितार दिव • चन्द्रमौलि वेगात्मेय वाचन-भेद अभिलेख भजति सहस्राक्षः मुवति द्विस्तदक्षा wole: स्मरपरवर्स लक्षणपशि सर्वपक्षः Fle कर्मलाई फुटावाम दृशमममृत कांता पौष्माचीव प्रभावाद कुरुत विरामं रक्षितारं प्रवृत्तौ सपदिव० ● चंद्रमौलि • गाव सर्ज पथस ख्या १ १ १ १ १ २
SR No.520763
Book TitleSambodhi 1984 Vol 13 and 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1984
Total Pages318
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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