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गडल-कान्ह-विरचित
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नाणई लाश निसिउ सदा अलजई कृष्ण तूं-सिउं रमइ आगइ जे अबला न निर्दयपणई स्त्री तेह न दूहव्यू खमइ ॥६२ श्री-श्रीरंग कुरंग-शाव-नयनी कामाकुली कामिनी 'भोला ! भोलिम कांई कुतिग करु १ दिउ चीर, थई यामिनी' थाकी, थर्थरती, पयोधर-कटी-भारिइं प्रसीनी सवे दीधा आगलि हाथ, लाज भनि थई, एकेकि वलगी खवे ॥६३ कीधी देवि दया तिहार, विलखी गोपी रही-नई जोई कीधी ऊगटि अंगि चंदनि सवे, तंबोलि पूर्या लेई । पूरिउ वंश मुरारि, साथिं सवि थई गोपी जि ताली देई चालिउ देव भुरारि मूर्ति भगवान् ते सर्व-अग्रे थई ।।६४
वाही राति विनोदि रामति-रसई गोपी घरे वीसरी दोहा गाइ गोपाल आपणि वल्या गोपी जि पूठइ करी । वाइ वंश मृदंग आगाले थिकु नाचइ रही थाकणे हरखी नारि जिह्वारि साथि रमती दीठी जि लोके घणे ॥६५
मोह्या लोक विनोदि रामति-रसई नाची जि ताली वाइ रीझ्या संत मुनीश्वर स्तुति करइ, प्रत्यक्ष देवी गाइ। कीजइ वर्ष सहस्र जु तप किम्हइ, तु देव दृष्टिइं थाइ भोला लोक ! जोउ, पुराण नर ए प्रत्यक्ष वीणा वाइ ॥६६
६३.१ क. श्रीरंग इंय. २. क. थ ख मालव ४. क. इकेक,
६४. २. ख. की ऊगट मिहधु, ग शवु ३. ग. बाई ४, ख. ते सवि आगलि थई. ग. अग्रे स लिखमा धरी
६५. १. ख. साही स्तनि यिनोदि, घरि आवी सरि, ग. आवी धरि वीसरी. २.क. दाहु, वल्या; ख चल्या, ग. वल्या ३ ग. वार छद.
६६.२. ख. देवा, ग देगा ३ क. दृष्टिइ, ख. दृष्टि, ग. दृष्टि, ४ क. जेइ