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कृष्ण-क्रीडित
ऊभइ तीरि ऊजायती सवि मिली मांडइ धराविउँ कही देखी नारि निवस्त्र पोछलि सवे छाँटई विनोदइ रही । 'दासी जन्म-नि जन्म कृष्ण तम-ची, दिइ चीर, को देखिसिइ लज्जा देव ! जु तम हुइ, करि कृपा, बालु भणी लेखसइ ।।५८
मोडी बांह पलिई, विचार कुण ए ? जोए-न मांटीपणूं लज्जा ए तह्म-नई हैया जि सरसूं जु प्राण कीजइ घणू । जाणे जादवराउ पाइ पडती तूं पूंठि आविइ मिली रूडा रीझविसिइ जिसी परि गमइ, तु कांइ जईइ टली ! ॥५९ छांटइ नीरि ज नारि नीलजपणइं स्वामी सवे खेलवइ गोपी पीन पयोधरा कठिन थ्या ते ठोग स्या झीलवइ । भीडइ ऊंडलि लाघवई, स्तन लसइ, होठइ हठई सिउँ धरइ देखी अंग विशेख लाल मनसां तु देव छांदा करइ ॥६०
लीवू चित्ति गुणे घणे रसि करी, ए-शिउं मिलइ ऊलटी 'स्वामी ! विरही रहीय न सकू जु स्नेह-वार्ता घटी । कीधी कामि कदर्थना ति गहिली तु लाज टाली है। जाणइ वेदन को किशी न किहि-नी, तु कृष्ण केथां थैइ ॥६१ स्वामी ! कृष्ण ! हवि किहां मिलिसि तू ? स्त्री को न छोडी जाइ लिइ तूं कंकण चीर, वीर ! पण तु दृष्टिई परहु का थाइ । ?
५८. The folio containing the text of 58 cd to 61 a bc is missing in T. २. ख. नीरि सघलो, ग. नीर संघली ३. क. तमची दई, देखसइ. ४. ख. देव मह्य हुई आवइ घणा पौर ए.
५९. १. ख. जाइन. २. क. ज; ख. तह्म रहिई जि बाल सरसू. ३. क याददाय, आवइ मली. ४. क रीझवशू किशी परि, जैइ
६०. १. ख, रीझवई.३ ख स्तन मिलइ. ४ क. वसेष.
६१. १. क. को लटी, ख चित्त गुणे घणे, मिल. ३. ख. तुं. ४. ख किसिई म कहि नी.
६२. १. क मिलिशि; ख. किहां हवा मिलिसि २. क. लई दृष्टई.