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कृष्ण- क्रीडित
सेरी संकडि, कृष्ण आगलि मिलिउ, जोई हसी गिउ वही
लागूं माय ! विनाण, मान मनि थिउं, लाजई अबोली रही । भागी भूख, न नींद्र सहरि सुख में, काम-ज्वरई आकुली फीटइ वेदन जु हर्वि मुझ किम्er दृष्टई मिलइ ए चली || ५ || जांणूं ए गत जन्म-नु उ नही श्रीकृष्ण मूं-सिउ' मिलिउ दीठउ तु न रहाइ, माइ ! मुझ-निं संकेति साचु पलिउ | विद्या जे लघु-लाघवी अनुभव, ते मोह दीठई थाह
पर काया- परवेस जे ठग रमइ, ते चित्त चोरी जाई || ६ ||
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जीण दृष्टि-मेलाई मन हरि धूतारडई धूरतिईं ते में मेलवि माइ ! माधव किम्es, जे श्याम छह मृरतिहं । गाउ चित्ति वसि, अहर्निश गुणे मूं चित्त तेह - सिउ रम
रूड राम अपार प्राणप्रिय मं, वाल्हउ ति प्रीतई गमइ ||७||
देखी कृष्ण अपूर्व प्रीति, मनि थिउं, जाणउ' सगु ए सदा वार्य चित्त रहह नहीं, लछमछइ जांग मिलं एकदा | सालह स्नेह हिs क्षणि क्षणि नवु, तुटलवली नई रही हा हे कृष्ण ! अकथ्य वेदन नवी, स्त्री हूं सकूं सूं सही ? || ८ ||
५. १. क शकटि २. क. विमान ख. विनाण तीनई मनि; ग
ख लाजी ण बोली; ग. लाजि ति बोली, लाजि न बोली.
निर्माण मन शु क. देहि सुख.
६. १. ख. ग. जे मूं मिल्यु. २. ख. माइ न म्हि अलतु नरेश्वर किही श्रीकृष्ण जे लौहड. 3. ख. जे मोह, शु. तु.
संकेति साचे कल्यु. ग. दीठु ग जे मूह ४. ख. ग.
७. १. क. येणि, ग. जेणी. २. क. पूरतई ३ क. ये चित्त मू सिउरमह ४. ख. ग. ते ते वली मू ं गमि
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८. १. ख. ग, मनि थई. २. क. महारु न लच्छ मन छई, ग जाणू 3, ख. ग. नावू ४ क नही सही, ग, सू करी.