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________________ डा. लक्ष्मीशकर निगम में इसी पर्वत को विजयाद्ध के नाम से सम्बोधित किया गया है । जैन साहित्य में वर्णित इस पर्वत के विवरण से इस धारणा की पुष्टि होती है। जैसा कि पूर्व मे उल्लेख किया गया है, विजयाद्ध पर्वत पूर्व और पश्चिम समुद्र को स्पर्श करता था। इस सम्बन्ध में डा० डी० सी० सरकार का मत है कि विन्ध्य नाम का प्रयोग नर्मदा के दोनों पावों में स्थित गिरि अखलाओं के लिए, गुजरात से लेकर गया तक के लिए किया गया है । डा० एस० एम. अली का कथन है कि पौराणिक विन्ध्याचल के अन्तर्गत सतपुड़ा, महादेव पहाड़ियों, हजारीबाग की पर्वत श्रृंखलाएँ तथा राजमहल की पहाडियाँ आती थी । इस प्रकार पौराणिक विन्ध्याचल निश्चित रूपसे अपने दोना सिरे से पूर्व और पश्चिम समुद्र को स्पर्श करता प्रतीत होता है तथा इसकी पुष्टि अमिलेखीय साक्ष्यों से भी होती है। बिहार के गया जिले के बराबर की पहाडियों से संलम नागार्जुनी पहाड़ियों का उल्लेख अनन्तवर्मन के नागार्जुनी पहाडी गुहा लेख१० में विन्ध्य के भाग के रूप में किया गया है। इसी प्रकार गुजरात के भड़ौच जिले के राजपिपला नामक स्थान से प्राप्त अभिलेख में, वहाँ के मध्यकालीन शासकों को विन्ध्याधिपति के रूप में सम्बोधित किया गया है ।११ इस सम्बन्ध में दृष्टव्य है कि भड़ौच (प्राचीन भरूकच्छ) के निकट नर्मदा समुद्र में समाहित होती है। वाशिटीपुत्र पुलुमावी के नासिक गुहालेख १२ में विन्ध्यपर्वत का उल्लेख "विह" के रूप में किया गया है । तिलायपण्णत्ती में विजयाद्ध के लिए भिन्न-भिन्न पाठ भेद मिलते है ।१३ इस प्रकार " विह" नाम "विजयाद्ध" के स्वनि साम्य के निकट प्रतीत होता है । विजयाई पर्वत से संबंधित ११० विद्याधरो के नगरों का उल्लेख सभों ग्रंथों में मिलता हैं ।१४ विद्याधरी से संबंधित होने के कारण इन नगरों के काल्पनिक होने का भनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। इनमें से कुछ ऐसे नामों के उल्लेख है, जो पौराणिक प्रतीत होते हैं, जबकि कुछ नाम ऐसे हैं जिनकी पुनरावृत्ति अन्य कई स्थानों के संदर्भ में की गई है। इसके बावजूद भी कुछ भौगोलिक तथ्यों का समावेश इसमें मिलता है। इसमें विद्याधरे की एक नगरी मेखलाग्रपुरपका विवरण उल्लेखनीय है । इस संबंध में ज्ञात ही है कि विद्याघरे का निवास पर्वत श्रेणियों पर होता है, एसी परिस्थिति में मेखलायपुर का समीकरण मेखल अथवा मेकल नामक (विन्ध्य की) पर्वत श्रेणी से किया जा सकता है। ब्राह्मणपुराणों में विन्ध्य पृष्ठ के निवासियों का विवरण देते हुये मेकलवासियों का उल्लेख किया गया है। मेकल नाम के आधार पर यहां से उद्गमित नर्मदा नदी को राजशेखर ने मेकलसुता और अमरकोश८ में मेकलकन्यका कहा गया है । कुछ अन्य स्थानों के अभिज्ञान में हमें साक्ष्यों के साथ-साथ कल्पना का आश्रय भी देना पड़ता है, इसके आधार पर कुछ तादात्म्य स्थापित करने का प्रयास किया गया है । किलकिल नामक स्थान मध्यप्रदेश के पन्न। जिले में प्रवाहित होनेवाली नदी किलकिला के तट पर रहा होगा। चित्रकूट का तादारभ्य इसी नगर के नाम की प्रसिद्ध गिरिधोणी से किया जा सकता है, जो उत्तरप्रदेश के बांदा जिले और मध्य प्रदेश के 111 बिके मध्य में स्थित है। वनगमन के अवसर पर राम यहां रुके थे।२५ ई. का वर्णन
SR No.520762
Book TitleSambodhi 1983 Vol 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages326
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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