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आगमगच्छीय श्री जिनप्रभसूरि घिरचित
अंतरंग विवाह-धवल पमाय गुण-ठाणु पाटणु तर्हि, अहे भषिय-जिउ निरुपमु वरु प ।१ चउधिह-संधु जान उत्त कीय, अहे वोहण सहस सीलंग [प] )२ सुभ-परिणामु संवेगु सहि, अहे वर गढ सोहई तेथु ए १३ उवसम सेणि आवाग्नु कीउ, अहे धर्म-ध्यान- धान उ लागु ए ।४ जोगह सुधि सिणाणु हुउ, अदे गुण--गण तूर-निनादुए ।५ चरण-करण सिणगार कीड, अहे उपसमु अणुअरु पासि ।६ सेय-लेसा घर-बहिणुलीया, अहे विवेक-करिबरारूढ ५ १७ तेज-पदम-लेस बहु बमरधागि, अहे शुक्ल ध्यान-छत्तु आपूरि ए ।८ पंच समिति तिगि गुपिति जानिणीया, अहे मंगल चाम कांति ५९ संतास तारणि आधु दोनु, अहे राग देस-सपुडु फोडि ५ ।१० चारित-रायह धूअ व, अह सब-धिर इ-वहअ वीवाह ए १११ तब-सिरि अणुअरि धीइ सही, अह खम-मुतालि मोह ए |१२ सत गुरु बभण श्रुतधरु, अहे दलण तारामेलु कीय ले(प) १३ सच्च-चय हथालेवु दीनु, अहे अकिंचा वहअ करु मलि प ११४ नव-तत्त नध-अग घेट्टिादिः रइय, अहे चउरंग-भावण चउरी ए १५ नीममु कंकणु बाधु तहिं अहे ओठ-कर्म अगियारी कीय ले(प) १६ दाणु सील तषु भावण वर, अहे वरतिय मगल चियारि ५ ।१७ लोरा-देसु वरु मोख पुरु अहे परिणीय मुणिवरि लाधु ए । १८ उपरिम-गुण-ठाण तुरय चडिउ, अहे मंघह कोड पूरेर ५११९ बत्तीस जोग संगह पलहलि, तहे दसषिह धिणय पणा (प) ६. इंदीय-दमु सुगंध-कूरु, अहे दया-दलि मह घीउ हे(ए) १२१ विविह आचार वर-वजणाई, अहे महावत पंच पकवान ५१२२ संपर ओलणु सोअ नीरुणि, अहे देसण-घयण तंबोलु ए १२३ बर वन्न बहु भग बारसंग, अहे सूउ घण कापड परिहि ५ १२४ इणि परि परिणए जो अ जगि, अहे लहइ से सिद्धिपुरि धासु [५] १२५ मंगलिक वीर जिणप्रभ ए, अहे मंगलिकु चउबिह-सघ ५ । २६,
॥ अंतरंग-विवाह धवल ॥ वसंत-रागेण भणनीयः ।।