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एक नयी नियुक्ति
8. खुल्लोऽसणदीहम्मि य अहं काराविभो अज्जाए | रयणीय कालगभ, अज्जा स वेगसमुत्पन्ना ॥ ( 8 ) 9 कहमेय" संजाय, रिसिहिंसा' पाविया मए पावे | तो देवया विनीया, सीम घरसामिणा पासे || (9) 1. सीमंधरेण भणियं, अबजे ! खुल्लो महाकप्पे ।
मा जूरिसि अन्पाणं धम्मम्मि निचला होतु ॥
चूलिका की रचना का इतिहास बहुत रोचक है । स्थूलभद्र एक प्रभावशाली भाचार्य हुये हैं। उनकी यक्षा आदि सति बहिनों ने भी दीक्षा ली थी । श्रीयक उनका छोटा भाई था। वह शरीर से बहुत कोमल था भूख को सहन करने की शक्ति नहीं थी अतः उपवास नहीं कर सकता था ।
एक बार पपप पर यक्ष को प्रेरणा से श्रीक मुनि ने उपवास किया । दिन तो सुखपूर्वक बीत गया लेकिन रात्री को भयंकर वेदना की अनुभूति हुई । भय कर वेदना से मुनि श्रीक देवलोक हो गये। भाई के स्वग वास से यक्षा को बहुत आघात लगा । मुनि की मृत्यु का निमित्त स्वयं को मानकर दुःखी रहने लगी । सघ ने साध्वी यक्षा को निर्दोष घोषित कर दिया लेकिन उन्होंने अन्न ग्रहण करना बन्द कर दिया ।
उस समय शासन देवता साध्वी यक्षा को सीमंधर स्वामी के पास ले गये । सोमं घर स्वामी ने यक्षा को प्रतिबोधित किया और कहा तुम इसके लिए दोषी नहीं हो। तुम्हारा भाई महाकल्प में देव बना है अतः तुम दुःखी न रहकर धर्म में दृढ बनो ! उस समय सीम घर स्वामी ने यक्षा को चार चूलिकाओं की वाचना दी। इनमें दो चूलिकाए दशवे. कालिक तथा दो आचारांग के साथ जोड दी गयी |
प्रस्तुत नियुक्ति का काल निर्धारण व कर्त्ता का उल्लेख करना कठिन है । लेकिन अत्यन्त स ंक्षिप्त में इसके द्वारा दशवेकालिक की रचना का संशिप्त शाम हो जाता है ।
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7. कहा मय (प्र)
8.
0 हिन्ता (प्र)
9. परिशिष्ट पर १, 97-101 आवश्यक चूर्णि भाग-2 . 188