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Fixing np of some Variants from Kalıdāsa
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(४-२)
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(४-२९)
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अयमेक पदे तिष्ठेरकोपवशात्प्रभावपिहिता स्वयि निबद्धरतेः महदपि परदुःख मृदुपयनविभिन्नों मूर्याचन्द्रमसौ हंस प्रयच्छ
(अ) ८६,८५ (अ) १६७, १२७ (अ) २१३, २०३ (वि) ३५२,२३३ (अ) ३०१, २३० (वि) ३६३, २५० (अ) १४४, १३७
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(४-१०) (४-१९) (४ १७)
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शाकु०
(१-९९)
(४-१४)
असंशयं क्षत्र अस्मान्साधु उत्पश्मणो गोहन्तां महिषा ग्रीवाभङ्गाभिरामम् चलापानां दृष्टि तष कुसुमरारत्वं प्रस्निग्धाः क्वचिदिगुदी
(अ) १२४,१३० (अ) १४२,१३६ (वि) १७१,१४५ (वि) ४४८, २८८
(अ) ११४,१९८ (अ) २, ३६ (अ) ३७१, २२० (अ) ८७, ८५
(१.२०)
(३-३) (१ १३)
मेघ०
तत्रागारं तामुत्तीर्य ब्रज तासा तु पश्चात्कनकप्रभाणां दी/कुर्वन् पादन्यासक्याणितरशनां विसकिसलय वेणीभूतप्रतनुसलिला श्यामास्वङ्ग
(वि) २३९, १८५ (वि) १२२,३२ (अ) ५३०,३४७ (वि) ७१,२६ (वि) १२१, २३ (अ) २२० २०६ (अ) १५९ १४७ (अ) ४२१, २७थ
(२ १२) (१-१७) (७-३९) (९.६१) (१.३५) (१-११) (१.२९) (२४४)
Sambodhi XII-13