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श्री पार्श्वनाथचरितमहाकाव्य
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प्रदेशप्रचयाऽभावादस्य नैवास्तिकायता ।
।। ११६॥
समयावलिकाद्यात्मा व्यवहारात्मकः स च अन्ये पञ्चास्तिकायाः स्युर्धर्माधर्मो नभस्तथा । काल एते त्वमूर्ताः स्युर्मूर्तद्रव्यं तु पुद्गलः ।। ११७॥
वर्णगन्धरसस्पर्श लक्षणा: पुद्गला मता: । अमूर्ताः स्कन्धदेशप्रदेशभेदात् त्रिधा मताः ॥११८॥ मूर्तद्रव्यं चतुर्धा स्यात् स्कन्धदेशप्रदेशतः । परमाणुस्त्वप्रदेशः स्कन्धादेर्मूलकारणम् ||११९ ॥ aणुकादिमहा स्कन्धरूपः स्कन्धः पृथग्विधः । घर्मछाया तमज्योत्स्ना मेघवर्णादिभेदभाक् ॥ १२० ॥ कार्यानुमेयास्त्वणवो द्विस्पर्शाः परिमण्डलाः । वर्णो गन्धो रसश्चैकस्तेषु नित्या भवन्ति ते ॥१२१॥ अनित्याः पर्ययैरेव सूक्ष्मसूक्ष्मो भवेद्व्यणुः । सूक्ष्मास्तु कार्मणस्कन्धाः सूक्ष्मस्थूलाः पुनर्मताः ॥१२२॥ शब्दगन्धरसस्पर्शाः स्थूलसूक्ष्माः पुनर्मताः । छायाज्योत्स्नाऽऽतपाद्याश्च स्थूलद्रव्यं जलादि च ॥ १२३॥
(११६) कालद्रव्य में प्रदेशप्रचय का अभाव है । इसीलिए काल अस्तिकाय नहीं है । व्यवहारात्मककाल समय, आवलिका आदि रूप है । ( ११७ ) ( काल के सिवाय ) अन्य पाँच द्रव्य पञ्चास्तिकाय कहे जाते हैं । धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये अमूर्त द्रव्य | पुद्गल मूर्तद्रव्य है । ( ११८ - ११९ ) पुद्गल के लक्षण हैं-वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श । अमूर्त द्रव्यों के तीन भेद होते हैं -स्कन्ध, देश व प्रदेश | मूर्त द्रव्य के चार भेद हैं- स्कन्ध, देश, प्रदेश और अप्रदेश (परमाणु) परमाणु, स्कन्ध आदि का मूलकारण है । (१२०) द्वयणुक से लेकर महास्कन्ध तक अनेकों प्रकार के स्कन्ध होते हैं— जैसे धर्म, छाया, तमस्, ज्योत्स्ना, मेघ, वर्ण आदि । ( १९२१ - १२२अब) अणुएँ अपने कार्य से अनुमेय है । परमाणु में दो स्पर्श, परिमण्डल, एक वर्ण, एक गन्ध और एक रसः सदा होते हैं । पर्याय के द्वारा परमाणु अनित्य होते हैं । ( १२२कड - १२४ अब ) परमाणु सूक्ष्म-सक्ष्म होता हैं । कार्मण स्कन्ध सूक्ष्म होते हैं । शब्द, गन्ध, रस और स्पर्श सूक्ष्मस्थूल होते हैं । छाया, ज्योत्स्ना, आतप आदि स्थूलसूक्ष्म होते हैं । जल आदि स्थूलद्रव्य होते हैं । पृथवी आदि स्थूल- स्थूल होते हैं। ये सब स्कन्ध के
भेद हैं ।
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