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________________ १०४ श्री पार्श्वनाथचरितमहाकाव्यं महेश्वरः । मत्तेभलीच्या पार्श्वमापतन्तं धन्याहृय उपागत्य तत्क्रमौ प्रणनाम सः ॥ १७ ॥ त्रिः परीत्य प्रभु नत्वा पञ्चाङ्गप्रणतिक्रमैः । सन्तुष्टोऽसौ प्रमोदातिरेकात् पुलकिताङ्गकः ॥ १८ ॥ स श्रद्धादिगुणोपेतो महापुण्यसमन्वितः । निर्दोष प्रासुकाहारं ददौ भगवते मुदा ॥१९॥ तद्गेहे रत्नवृष्टिस्तु पपात गगना गणात् । महादानफलश्रेणी सद्यः दिवोऽपतत् प्रसूनानां वृष्टिः सद्गन्धबन्धुरा । महापुण्य लतायाः किं प्रत्यप्रा सुमनस्ततिः ॥२१॥ नेदुर्नादापूरितदिग्मुखाः । अवावा पुष्परजसां मन्दं शीतो मरुद ववैौ ॥२२॥ अहो! पात्रम् अहो! दानम् अहो! दातेसि स्वाङ्गणे । प्रमोदमेदुरस्वान्तैर्देवैरुज्जगिरे गिरः ||२३|| कृतार्थममन्यत । प्रादुरभूदिव ॥२०॥ आमन्द्रमानका धन्य मन्यस्तदा धन्यः स्वं स्वपदन्यासैर पुनान्मद्गृहाणम् ॥ २४ ॥ यत् पार्श्वः बनं जगाम भगवान् विधाय स्वतनुस्थितिम् । धन्योऽपि तमनुव्रज्य कियद्दूरं न्यवीवृतत् ॥ २५ ॥ (१७) मस्त हाथी की लीला से आते हुए पार्श्व को देखकर धन्य नामक महेश्वर ने समीप जाकर पार्श्व के चरणों में प्रणाम किया । (१८) तीन परिक्रमा करके, पञ्चाङ्गप्रणति से प्रभु को नमस्कार करके वह धन्य प्रसन्नता के भार से अनीव पुलकित गात्र वाला होकर सन्तुष्ट हुआ (१९) श्रद्धादि गुणों से युक्त, महापुण्यों वाले उस राजा ने शुद्ध, निर्दोष आहार भगवान् को प्रसन्नता से दिया । ( २० ) उसके घर में आकाशमण्डल से रत्नों की वर्षा हुई मानों महादान के फलों की सन्तति तत्काळ प्रकट हुई हो । (२१) पुष्पों की सुगन्धित वृष्टि स्वर्ग से होने लगी । महापुण्यलता की क्या वह ताजी पुष्पवर्षा थी ? (२२) दिशाओं के प्रान्तभाग को मुखरित करने वाली दुन्दुभियाँ बजने लगों, पुष्प के परागों को बहाने वाला शीतल मन्द पवन बहने लगा । ( २३ ) 'अहा ! योग्यपात्र, अहा ! दान, अहा ! दाता, ' इस प्रकार से आकाशप्रांगण में प्रमोदनिर्भर मन वाले देवता जोर से वाणी कहने लगे । (२४) धन्य ने अपने को कृतार्थ व धन्य-धन्य समझा कि पार्श्व ने अपने चरणकमलों से मेरे घर के आँगन को पवित्र किया । (२५) अपनी शरीरस्थिति करके ( भोजन कार्य करके) पार्श्व भगवान् वन को चले गये । वह धन्य भी थोड़ी दूर तक उनका अनुसरण करके लौट आया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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