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आ. जिनहर्षसूरि-विरचित
सिद्धचक्र मन ऊमह्यउ इणि, भवइ मयणा तणे वयण1 वली । आराध्यउ नमी जिन हरख संपद, मिली तेथी आपदा सहु उपसमी ॥६०॥
आठ सही श्रीमति तणी, तुझ राणी थई एह । तुझ अनुमोदन सात सय, यया नीरोगी देह ॥६१॥ सिंह अंत व्रत आदरी, अणसण करी मरेह । अजितसेन+ हु अनुक्रमि थए थय उ, ताहरउ राज्य ग्रहह ।।६।। करम जिसा करीयई तिसां, भोगवीयइ निरवांण । शानी वयण सुणी करी, नृप भाखइ इम वाणि ॥६३।।
२१. ढाल : मोरी बहिनी काई अचरिज पात पहनी।
मुझ सगती नही चारित्रनी, चारित्र दुस्कर धर्म । मुनि कहा भावक व्रत ग्रहउ, सुगम सिंघल हुइ कम ॥१४॥ श्रावक व्रत घरह मुनि पासइ, श्रीपाल आणी भाख विसाल ।
कापड करम नी जाल । श्रा । संसार भा भव केटला हु करिसि हिवइ मुनिराज । भव आठ नर सुरना करि, नवमह सहू सिव राज ॥६५॥
जिनधर्म आराधह सदा, निति साचवइ पचखाण । जिन भगति जगतइ साचवइ, पालइ जिनवर आण ॥६६॥ भा। सामायिक पोषध करह, दीयइ दान ऊलट आणि । सिद्धचक्र ाराषई विधइ, सुणइ सुगुरु मुखि वाणी ॥३७॥ श्रा ।
नृप माय राणी धरम पाली, सुद्ध समकित धारि। सुरगतइ पहुता सहु10, पाम्या1 सुर सुख सार ॥६८॥ श्रा।
नर एक भव सुर एक भव, इम आठ भव नइ अंत । सिवपुरी अविचल पामिस्यई, 12लहिस्यइ सुख अनंत ॥६९॥ श्रा । श्रीपाल चरित्र निहालिनह, सिद्धचक्र नवपद धारि । ध्याईयह तउ सुख पाईयई, 13जगमां जस विस्तार ॥७॥ श्रा ।
1 वयणे B 2 तेहथी B 3 ०मते B 4 हुथए A 5 बहिनी कहि B 6 शपलक B केतला B 8 जुगते B9 धर्म B 10 सहु जणा B 11 जणा A 12 जिहां के B 13 जगमें B
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