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आ. जिनहर्षसूरि-विरचित
४ ढाल अढीयानी।
सुरसुंदरी वीवाह, थाप्यउ अधिक उछाहहिः । हीयडइ धरी ए, वाल्ही दीकरी ए ॥४१॥
आरिम कारिम' कीघ, परणावी जस लीध । दीघउ दत घणउ ए, पार नहीं ते तणउ ५ ॥४२॥
वरित अरिदमण कुमार, सुरसुंदरि घरि नोरि । सरिखड जोडिलउ ए, सरिज्यउ विहि भलउ ए ॥४३॥
10 लोक करइ मिलि वात, जोवउ पुन्य विख्यात । पुन्यई वर मिलऊ ए, मनवंछित फल्य ए॥४४॥
एक कहई11 धन्यराय, पुत्री कीध पसाय । . वंछित वर दीयउ ए, काम जोई कीयउ ए ॥४५॥
एक कहइ12 बुद्धिवंत13, ए 14कुमरी गुणवंत । रीझवि नृप भणी ए, लहि15 सपति घणी ए ॥४६॥
सैव 16धरमथी 17 पणि, 18पामी सुख नी श्रेणी19 । देखइ20 जेवउ ए, लोक कहइ21 तेहवऊ ए ॥४७।।
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मात पिता पाय लागि, सीख सहनी मागि। प्रिउ-सु 27 हितपरइ ए, चाली सासरई ए ॥४८॥
हिवइ23 ऊंबर अधिकार, कहइ24तु सांभलि नारि । तु सुर-कामिणी ए, रूप 25 सोहामणी ए ॥४९॥
ते भणी मुझ आदेश. हीयडई76धरीय विसेस । . मन मिलई27 जेहसु ए, विलसउ तेहसु ए ॥५०॥
1 ढाल न० नहीं A 2 हित B 3 °य B 4-5 रिण B 6 घणो B 7 वर B 8 कुमा• B9 रिजौ नहि 10 गाथा ४४ का अभाव B 11 कहै B 12 कहै B 13 वुधि. B 14 कुंम. B 15 लही B 16 धर्म B 17 एणि B 18 पांमी B 19 अणि B20 खई B21 कहई B 22 ०धरई B23 हवै B 24 कहैं B 25 सहा. B26 हीय धरीयई B 27 मिले B
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