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________________ लधु श्री पालरास ३७ भी देश विदेश में परिभ्रमण के प्रलोभन को रोक न सका । धवल एक सोनामोहर किराये से ले चलने को तैयार हुआ । ___बब्बर कोट नामक बंदरगाह रत्नदीप जाते हुए आया । जहाजो ने वान पडाव डाल। राज्य कर्मचारी कर लेने को आए तब धवल ने कर देने से इन्कार कर दिया। तब सैनिकों ने धवल को पकड़ कर एक वृक्ष के साथ बांध दिया। इधर धवल के सभी सुभट नौ दो ग्यारह हो गये । तब धवल ने अवसर देख श्रीपाल को बधनमुक्त करने की याचना की। श्रीपाल ने कहा 'इन जहाजों में से अर्द्ध मेरे हवाले करो तो मैं छुड़ा सकता हूँ ।' 'मरता क्या नहीं करता' को चरितार्थ करते हुए धवल ने मजूरी दी । श्रीपाल ने संग्राम कर बाबरपति महाकाल राजा को पकड़ कर बाँध दिया, धवल को मुक्त किया । धवल ने बाबर. पति को मारने के लिए श्रीपाल से कहा । श्रीपाल ने क्षत्रियता का परिचय देते कहा कि 'बंधन में बंधे को मारना क्षत्रिय का कार्य नहीं है।' इससे बाबरपतिने बहुत आकर्षित होकर श्रीपाल को ससम्मान नगर प्रवेश कराके अपनी पुत्री मयणसेना से पाणिग्रहण कराया। राजा ने नवनाटक आदि अपार दहेज देकर विदा किया । जहाज समुद्र को चीरते हुए रत्नद्वीप जा पहुँचे । ____ वहाँ एक परदेशी को देख कोई अचरज देखा हो तो पूछ। । परदेशी ने कहा कि रत्नसंचया नगरी में कनककेतु राजा के कनकमाला रानी से मदनमजूषा पुत्री है। ऋषभ जिणंद के मदिर में पूजा सेवा करके बाहर निकली कि द्वार बद हो गये । राजा व नगरवासी सभी चिन्तित हुए । देववाणी हुई कि जो मदनमंजूषा का भरतार होगा वही एक मास बाद इसका द्वारोद्घाटन करेगा । श्रीपाल ने वहाँ जाकर नवपद का स्मरण कर द्वार खोले । जय जय कार की ध्वनि से आकाश भी गुंजायमान हुआ । सभी गुरुमहाराज के पास धर्मदेशना सुनने गये । धर्मोपदेश में गुरुमहाराज ने नवपद का अधिकार श्रीपाल के दृष्टान्त के पाथ कहा । राजा ने पूछा 'कौन श्रीपाल ?' श्रीपाल को अपने सन्मुख बैठा जान राजा ने अपनी पुत्री मयणमंजूषा को लग्नग्रन्थी में बाँध दिया । इधर धवल भी उसी नगरी में आया और करचोरी करने के कारण राजसुभटों ने पकड़ लिया । श्रीपाल ने देखा और पितृतुल्य धवल को छुड़वा लिया । जहाज गतिमान हुए और धवल सेठ श्रीपाल को दो कन्याओं के साथ देख जल भुन राख हए । राजपुत्रियों की ओर आकर्षित हो धवल विरहाकुल होने लगा। मित्रों से उपाय पूछा तब एक मित्र ने कपट भरी प्रीति कर रात्रि में समुद्र में डाल देने की सलाह दी। आश्चर्यजनक वस्तु दिखाने के बहाने धवल ने श्रीपाल को समुद्र में डाल दिया । विद्यासाधक की विद्या के प्रभाव से मगरमच्छ की पीठ पर श्रीपाल जा भैठा । इधर कोंकणाधिपति को नैमित्तिक ने कहा था कि जो पुरुष साख शुक्ला दशमी को मगरमच्छ पर सवार होकर आवेगा और चपा के वृक्ष के नीचे सो जावेगा वही तुम्हारी पुत्री का वरराज होगा । श्रीपाल को उस अवस्था में देख राजा ने पुत्री का विवाह श्रीपाल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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