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________________ __ जैन मन्दिरों में काम-शिल्प काम-कला से सम्बन्धित मूर्तियों के उदाहरण खजुराहो ( पार्श्वनाथ मन्दिर, दिगम्बर ९५०-७० ई. ), देवगढ (मन्दिर १८-दिगम्बर ल. ११ वीं शती ई ), कुभारिया ( नेमिनाथ मन्दिर-श्वेताम्बर, १२ वीं शती ई.), तारं गा ( अजितनाथ मन्दिर-श्वेताम्बर, १२ वीं शती ई.), एव' नाडूलाई ( शांतिनाथ मन्दिर - श्वेतांबर, ११ वी शती ई.) के जैन मन्दिरों पर हैं। खजुराहो के पार्श्वनाथ मन्दिर के शिखर पर उत्तर और दक्षिण की ओर समान विवरणों वाली दे। मूर्तियां हैं (चित्र १)। दोनों उदाहरणों में प्रगाढ़ आलिंगन में बद्ध दो निर्वस्त्र युगलों को चुम्बन की मुद्रा में दिखाया गया है । स्त्री का उठा हुए एक पैर पुरुष के कमर के पास है, जबकि पुरुष का एक पैर स्त्री के जानु पर है। दोनों के पैरों की सदा संभवत: इन युगलों के संभोगरत होने के भाव को भी व्यक्त करती है। दाढ़ी के यक्त पुरुष के केश पीछे की ओर संवारे हैं और वह कंगन, बाजूबंद, कर्णकुण्डल आदि से सज्जित है। स्त्री मेखला भी पहने है । स्त्री-पुरुष दोनों के गले में दुपट्टे जैसा एक वस्त्र भी है । पार्श्वनाथ मन्दिर के दक्षिणी शिखर पर विवस्त्र-जघना अप्सरा की भी एक मूर्ति है । इन उदाहरणों के अलावा पार्श्वनाथ मन्दिर पर काम सम्वन्धी अन्य कोई मूर्ति नहीं है । आदिनाथ और घण्टाई जैन मन्दिरों एवं खजुराहो के अन्य जैन मूर्ति अवशेषों में कामकला सम्बन्धी अंकन नहीं है। ऐसी स्थिति में पार्श्वनाथ मन्दिर की काम सम्बन्धी मूर्तियां खजुराहो के ब्राह्मण मन्दिर पर इस प्रकार के शिल्पांकन की विशेष लोकप्रियता का प्रतिफल प्रतीत होती है। ब्राह्मण मन्दिरों की काम मूर्तियों में समाज के विभिन्न वर्गों के साथ ही कभी-कभी जैन साधुओं को भी इस प्रकार के वर्जित कृत्यों में लिप्त दिखाया गया है । ब्राह्मण मन्दरों पर ऐसी कई काम-सम्बन्धी मूर्तियां हैं जिनमें मुण्डित मस्तक और लंब कर्ण तथा मयूर पिच्छिका और मुखपहिया से युक्त निर्वस्त्र जैन साधुओं को चुंबन, प्रगाढ़ आलिंगन, स भोग और मुखमैथुन की विभिन्न मुद्राओं में आकारित किया गया है । (चित्र २) । लक्ष्मीकांत त्रिपाठी ने ईन्हे जैन क्षपणक साधओं की मूर्तियां बताया है, जो उचित है । १२ लक्ष्मण मन्दिर (१० वीं शती ई.) की उत्तरी भित्ति की ऐसी ही एक मूर्ति में मयूरपीच्छिको से युक्त मुण्डित मस्तक जैन साधु की निर्वस्त्र आकृति के वक्षःस्थल पर श्रीवत्स चिन्ह भी बना है । जैन साधु के सामने बेठी स्त्री आकृति अपने मुख में साधु का लिंग लिये हुए हैं। यह मुखमैथुन का शिल्पांकन हैं । स्मरणीय है कि पार्श्वनाथ मन्दिर की काम मूर्तियों में पुरुष आकृति दाढी से युक्त हैं। देवगढ़ ( ललितपुर, उत्तर प्रदेश ) के जैन मूर्ति समुह में कामकला सम्बन्धी मूर्तियां अत्यल्प है। केवल मन्दिर १८ के प्रवेश-द्वार पर ही इस प्रकार की तीन मूर्तियां है। समान विवरणों वाली दो मूर्तियों में मुण्डित मस्तक, लम्ब कर्ण, निर्वस्त्र जैन साधुओं को लेटे दिखाया गया है । जैन साधुओं के समीप कमण्डलु और मयरपीच्छिका भी रखे है। साधुओं के चरणों के पास स्त्री आकृतियां बैठी है जो एक हाथ से या तो उनका चरण दबा रही है या फिर उनके तालुओं में कुछ लगा रही हैं । तीसरी मूर्ति प्रवेश-द्वार के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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