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________________ १४ सुषमा कुलश्रेष्ठ प्राचीन काल से भारत के समय तक प्रचार में रहा. कब लुप्त हो गया, इसका पता लगाना कठिन हो गया है। जिस वाद्य को आज हम उत्तरभारतीय मृदंग अथवा पखावज के नाम से जानते हैं, दक्षिण भारतीय जिसे अपना मृदगम् कहते हैं, वह भरतकालीन मृदंग का केवल एक भाग है ! मृदंग में यह परिवर्तन लगभग सातवीं शताब्दी से हो होने लगा था जो शाङ्ग देव के समय तक पूरी तरह बदल गया । मेवों के गम्भीर गर्जन तथा मृदंग ध्वनि में बहुत साम्य होता है, तभी तो ओषधिप्रस्थ नगर के गृहों पर घिरे हुए मेघों के गर्जन से मिश्रित मृदगध्वनि ताल और लय से पहचानी जाती थी । ताल और लय ही मेघगर्जना तथा मृद'गध्वनि के भेदक तत्व थे-- 'शिखरासक्तमेघानां व्यज्यन्ते यत्र वेश्मनाम् । अनुगर्जितसन्दिग्धाः करणेमुरजस्वनाः ॥ कुमारसंभव ६।४० मेघदूत में अनेक स्थलों पर मुरज का उल्लेख हुआ है । यथा -- 'निहादस्ते मुरज इव चेत्कन्दरेषु ध्वनिः स्यात् ।' पूर्वमेघ ६० 'सङ्गीताय प्रहतमुरजाः स्निग्धगम्भीरघोषम् ।' उत्तरमेघ १. 'त्वद्गम्भीरध्वनिषु शनकैः पुष्करेष्वाहतेषु ।' --उत्तरमेघ २ मृदंग की मायरी मार्जना से मालविकाग्निमित्र में लोगों को ज्ञात हो जाता है कि मालविका का नत्य प्रारम्भ होने वाला है । (११२१) रघुवंश में राजा अग्निवर्ण नर्तकियों के नत्य करते समय स्वयं मृदंग बजाकर ताल देते थे (१९।१४) -- 'स स्वय प्रहतपुष्करः कृती लोलमाल्यवलयो हरन्मनः । . नर्तकीरभिनयातिलाधिनी : पार्श्ववर्तिषु गुरुष्वलज्जयत् ॥' १६।१४ अन्तिम पद्य प्रस्तुत है -- 'अक्षय्यान्तर्भवननिधय: प्रत्यहं रक्तकण्ठे ___ रुद्गायद्भिर्धनपतियशः किन्नरैर्यत्र सार्द्धम् । वैभ्राजाख्य विबुधवनितावारमुख्या सहाया बद्धालापा बहिरुपवन' कामिनो निर्विशन्ति ॥' उत्तरमेघ १० अर्थात् जिस अलका में घर के अन्दर कभी भी समाप्त न हो सकने वाली निधियों को रखने वाले, अप्सरा रूपी वार-रमणियों को साथिन बनाने वाले और तरह तरह की बातें करने वाले कामीजन कबेर की कीर्ति का उच्चस्वर से गान करने वाले, मधुर कण्ठ वाले किन्नरों के साथ 'वैभ्राज' नामक बाह्योद्यान का सुख प्राप्त करते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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