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अलकापुरी आर कालिदासीया सङ्गीतवैदुषी
सुषमा कुलश्रेष्ठ
'जायन्ते कति जज्ञिरे कति जनिष्यन्ते कतीह क्षिती स्रष्टारो नितरामिदं तु कविभिर्निर्मत्सर : कथ्यताम् । आपूर्वापरदक्षिणोत्तरहरित्साहित्यसिंहासन - स्वैरारोहपराक्रमं भजतु कः श्रीकालिदासात्पर: ॥
संस्कृत साहित्य के अप्रतिम कवि कालिदास की कृतियाँ में उनका विविध-शास्त्र-विषयक पाण्डित्य परिलक्षित होता है । व्याकरण, दर्शन, आयुर्वेद, वनस्पतिशास्त्र तथा संगीत आदि ललित कलाओं में कवि परम निष्णात थे । 'गीतं वाद्य तथा नृत्यं त्रयं सङ्गीतमुच्यते ।' संगीत के अन्तर्गत गायन, वादन तथा नृत्य तीनों को परिगणित किया जाता है। वैसे ये तीनों संगीत की स्वतन्त्र तीन विधायें हैं। इन तीनों के अनेकविध उल्लेख कालिदास की सभी कतियों में उपलब्ध होते हैं। कालिदास साहित्य का अनुशीलन करते समय पाठक इतना रसविभोर हो जाता है कि उनके साहित्य में किस शास्त्र अथवा विद्या के कितने उल्लेख हैं, इसकी और उसका ध्यान सहज ही नहीं जाता किन्तु जब केवल संगीतशास्त्र की दृष्टि से कालिदास-साहित्य का अध्ययन किया जाय तो ज्ञात होता है कि संगीत कला के जितने अधिक उल्लेख कालिदास-कृतियों में हैं, उतने किसी भी अन्य संस्कृति-कवि के साहित्य में नहीं । ये सब सांगीतिक उल्लेख केवल यू ही काव्य में प्रयुक्त नहीं हैं अपितु कवि ने उनका बड़ा औचित्यपूर्ण तथा सरस प्रयोग किया है । संगीत-सम्बन्धी उन उल्लेखों ने कालिदास के साहित्य को एक अपूर्व रमणीयता एवं मधुरता प्रदान की है । वे सब उल्लेख कवि के संगीतविषयक परम वैदुष्य के सूचक हैं । संगीत के अल्प-ज्ञान से युक्त कवि वैसे प्रयोग कभी कर ही नहीं सकता। संगीत की तोनों विधाओं के शास्त्रीय एवं क्रियात्मक उभयपक्षों से कवि भली भांति परिचित थे। ____ कालिदास-प्रणीत कुमार सम्भव एवं मेघदूत में हिमालय का सुन्दर वर्णन उपलब्ध होता है । हिमालय का ही एक भाग कैलास है और इसी कैलास की घाटी में यक्ष की अलकापुरी बसी हुई है। इस अलकापुरी का अतिरमणीय एवं चित्ताकर्षक चित्र कालिदास ने प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत शोधपत्र में मेघदूत के अलकावर्णनपरक केवल तीन पद्यों में कवि के संगीत. प्रयोग की दक्षता को दर्शाने का प्रयास किया गया है । प्रथम पद्य प्रस्तुत हैं
'विद्यत्वन्तं ललितवनिताः सेन्द्रचापं सचित्राः सङ्गीताय प्रहतमुरजाः स्निग्धगम्भीरघोषम् । अन्तस्तोयं मणिमयभुवस्तुङ्गमभ्रंलिहाया: प्रासादास्त्वां तुलयितुमल यत्र तैस्तैर्विशेषैः ॥' उत्तरमेघ १.
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