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________________ 130 H. C. Bhayani (15) हरि नचाविउ पंगणइ __ एम्बहिं राह-पोहरह विम्हइ पाडिउ लोउ । जं भावह तं होठ ॥ (सिद्धहेम, ८-५-४२०.२) (16) उभ सरम-णिसाए मंतो समं वाल गोवीहिं राहाइ कण्हो करे पुजिम धुलि-पुज । ललिअ-उहअ-हत्येण पच्छाइऊणच्छि-बत्ताई णीओ समं जाव संकेअ-केली-पएस ॥ विहलिअ कर रोहो पलोएइ जा ता पुरो पुण्णिमा-चंद-बोंदी णवेदीवरच्छी किसंगी विहसिभ सविलास पुणो नीष सो गाढमालिंगिओ साभर चुंबिओ णिन्भरं राभिओ अ॥ (स्वयम्भूच्छन्दस, १-७५.१) (17) मेधैमें दुरमम्बरं वनभुवः श्यामास्तमालद्रुमैर् नक्तं मीरयं त्वमेव तदिमं राधे गृह प्रापय । इत्थं नन्दनिदेशतश्वलितयोः प्रत्यग्रकुञ्जद्रम राधामाधवयोजयन्ति यमुनातीरे रहःकेलयः ॥ (गीतगोविन्द, १) (18) रामए तार-बारे थणे पडिविविध कण्हं बालाइ दट्टुं बलो-त्ति पलज्जिय। गाठ रिदठारिणा वि प्पिआ इम मुद्धिमा गाद केजण की उणो उवगूहिआ ॥ (स्वयम्भूच्छन्द्रस,१-१२.१) (19) मुह-मारुएण तं कण्ह गोर राहिआए भवणेतो। एआण बल्लवीणं अण्णाण वि गोरअं हरसि ॥ (गाहाकोस, १-८९) (20) कसलं राहे मुहिमो सि कंस कंसो कहि कहिं राहा। इय बालियाइ भणिए विलक्ख-हसिर हरि नमह ॥ (वजालग्ग, ५९०) (21) कण्हो जयह जुवाणो राहा उम्मत्त-जोन्वणा जयह । जउणा बहुल-तरंगा ते दियहा तेत्तिय उचेव ॥ (वालका ५९२) (22) केसि-बियाण-महिपापसण-लंछणग्धवियं । न मुएइ कण्ह जुण्ण पि कंघुयं अज्ज-वि विसाहा ॥ (वजालग्ग ५९५) (23) राहाइ कवोल-तलुच्छलत-जोहा-णिवाय-धवलंगो। रह-रास-वावगए पवलो आलिंगियो कण्हो ॥ (वलालम्ग, ५९६) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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