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H. C. Bhayani
(15) हरि नचाविउ पंगणइ
__ एम्बहिं राह-पोहरह
विम्हइ पाडिउ लोउ । जं भावह तं होठ ॥
(सिद्धहेम, ८-५-४२०.२)
(16) उभ सरम-णिसाए मंतो समं वाल गोवीहिं राहाइ कण्हो करे पुजिम धुलि-पुज ।
ललिअ-उहअ-हत्येण पच्छाइऊणच्छि-बत्ताई णीओ समं जाव संकेअ-केली-पएस ॥ विहलिअ कर रोहो पलोएइ जा ता पुरो पुण्णिमा-चंद-बोंदी णवेदीवरच्छी किसंगी विहसिभ सविलास पुणो नीष सो गाढमालिंगिओ साभर चुंबिओ णिन्भरं राभिओ अ॥
(स्वयम्भूच्छन्दस, १-७५.१) (17) मेधैमें दुरमम्बरं वनभुवः श्यामास्तमालद्रुमैर्
नक्तं मीरयं त्वमेव तदिमं राधे गृह प्रापय । इत्थं नन्दनिदेशतश्वलितयोः प्रत्यग्रकुञ्जद्रम राधामाधवयोजयन्ति यमुनातीरे रहःकेलयः ॥
(गीतगोविन्द, १) (18) रामए तार-बारे थणे पडिविविध
कण्हं बालाइ दट्टुं बलो-त्ति पलज्जिय। गाठ रिदठारिणा वि प्पिआ इम मुद्धिमा गाद केजण की उणो उवगूहिआ ॥
(स्वयम्भूच्छन्द्रस,१-१२.१) (19) मुह-मारुएण तं कण्ह गोर राहिआए भवणेतो। एआण बल्लवीणं अण्णाण वि गोरअं हरसि ॥
(गाहाकोस, १-८९) (20) कसलं राहे मुहिमो सि कंस कंसो कहि कहिं राहा। इय बालियाइ भणिए विलक्ख-हसिर हरि नमह ॥
(वजालग्ग, ५९०) (21) कण्हो जयह जुवाणो राहा उम्मत्त-जोन्वणा जयह । जउणा बहुल-तरंगा ते दियहा तेत्तिय उचेव ॥
(वालका ५९२) (22) केसि-बियाण-महिपापसण-लंछणग्धवियं । न मुएइ कण्ह जुण्ण पि कंघुयं अज्ज-वि विसाहा ॥
(वजालग्ग ५९५) (23) राहाइ कवोल-तलुच्छलत-जोहा-णिवाय-धवलंगो। रह-रास-वावगए पवलो आलिंगियो कण्हो ॥
(वलालम्ग, ५९६)
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