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________________ The Childhood Exploits of Krşna 129 (5) णह-रेहा कारणाओ करुणं हरंतु वो सरसा । वच्छत्थलम्मि कोत्थुह किरणाअंतीओ कण्हरस ।। (गउडवह, २२) (6) तं णमह पी वसणं जो वहा सहाव सामलच्छा । दिअस-णिसा-लअ-णिग्गम-विहान सबल पिव शरीरं । (गउडवह, २७) (7) तस्सेय पुणो पणमह णिहुयं हलिणा हसिज्जमाणस्स । अपहृत्त-देहली-लंघणद्ध-वह-संठियं चलणं ।। ... (लीलावई, ३) (8) सो जयउ जस्स पत्तो कंडे रिठासुरस्स घण-कसणो । उपाय-पवडढिय-काल-वास-करणी भुय-फलिहो । . (लीलाधई, ४) (9) हरिणो जमलज्जुण-रिट्ठ-केसि-कंसासुरिंद-सेलाण । भंजण-वलण-वियारण-कड्दण-धरणे भुए णमह ॥ . (लीलावई, ६) (10) ककस भुय-कोप्पर-पूरियाणणो कढिण-कर कयावेसो । केसि-किसोर-कयस्थणे-कउज्जमो जयइ महुमहणो ॥ (लीलावई, ७) (11) गत्येप्पिणु महुमहणेण कालिउ णहयले भामियउ । मीसावणु कंसहो णाई काल-दंडु उग्गामियउ ।। (रिट्ठणेमि-चरिय, ६-३-९) (12) एहु विसमउ सुठु आएसु पाणंतिउ माणुसहो विट्ठी-विसु सप्पु कालिअउ । कंसु वि मारेइ धुउ कहिं गम्मउ काई किउजउ ॥ (स्वयम्भूच्छन्दस, ४-१०.१) (13) सव्व-गोविउ जइ-वि जोएइ हरि सुटठु-वि आअरेण देइ दिदठी जहिं कहिं वि राही । को सक्कइ संवरेवि डड्ढ णअण हे पलोहा ॥ .(स्वयम्भूच्छन्दर, ४-१०.२) (14) देह पाली थणहं पन्भारे तोडेप्पिणु गलिणि-दलु हरि-विओअ-संतावे तत्ती । फल अण्णहे पावियउ करउ दइअ जं किंपि रुच्चइ ॥ - (स्वयम्भूच्छन्दम, ४-११.१) Sambodhi XI-16 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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