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The Childhood Exploits of Krşna
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(5) णह-रेहा कारणाओ करुणं हरंतु वो सरसा । वच्छत्थलम्मि कोत्थुह किरणाअंतीओ कण्हरस ।।
(गउडवह, २२) (6) तं णमह पी वसणं जो वहा सहाव सामलच्छा । दिअस-णिसा-लअ-णिग्गम-विहान सबल पिव शरीरं ।
(गउडवह, २७) (7) तस्सेय पुणो पणमह णिहुयं हलिणा हसिज्जमाणस्स । अपहृत्त-देहली-लंघणद्ध-वह-संठियं चलणं ।।
... (लीलावई, ३) (8) सो जयउ जस्स पत्तो कंडे रिठासुरस्स घण-कसणो । उपाय-पवडढिय-काल-वास-करणी भुय-फलिहो । .
(लीलाधई, ४) (9) हरिणो जमलज्जुण-रिट्ठ-केसि-कंसासुरिंद-सेलाण । भंजण-वलण-वियारण-कड्दण-धरणे भुए णमह ॥ .
(लीलावई, ६) (10) ककस भुय-कोप्पर-पूरियाणणो कढिण-कर कयावेसो । केसि-किसोर-कयस्थणे-कउज्जमो जयइ महुमहणो ॥
(लीलावई, ७) (11) गत्येप्पिणु महुमहणेण कालिउ णहयले भामियउ । मीसावणु कंसहो णाई काल-दंडु उग्गामियउ ।।
(रिट्ठणेमि-चरिय, ६-३-९) (12) एहु विसमउ सुठु आएसु
पाणंतिउ माणुसहो विट्ठी-विसु सप्पु कालिअउ । कंसु वि मारेइ धुउ कहिं गम्मउ काई किउजउ ॥
(स्वयम्भूच्छन्दस, ४-१०.१) (13) सव्व-गोविउ जइ-वि जोएइ
हरि सुटठु-वि आअरेण देइ दिदठी जहिं कहिं वि राही । को सक्कइ संवरेवि डड्ढ णअण हे पलोहा ॥
.(स्वयम्भूच्छन्दर, ४-१०.२) (14) देह पाली थणहं पन्भारे
तोडेप्पिणु गलिणि-दलु हरि-विओअ-संतावे तत्ती । फल अण्णहे पावियउ करउ दइअ जं किंपि रुच्चइ ॥
- (स्वयम्भूच्छन्दम, ४-११.१)
Sambodhi XI-16
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