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________________ ५८.. ... श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य सङ्क्रान्तमस्मिन् सकलं श्रुतं स्यात् प्रश्रयः श्रुतात् ।। तत एव जगन्नी तनैपुण्यं ववृतेतराम् ॥३३॥ खपञ्चसः वह यष्टवर्ष मानेऽन्तरे गते । श्रीनेमेः पार्श्वनाऽयं तदन्तरुदपद्यत ।३४॥ शतवर्ष प्रमाणायुर्नवहस्ततनुन्छितिः । कदाचिद्विधे गोष्ठी श्रीपावः सुरदारकैः ॥३५॥ क व्यव्याकरणस्फ रस लकारोक्तियुक्तिभिः । छन्दोगणस्फुरजातिप्रस्ताराद्यैः कदाचन ॥३६॥ कदाचिद् वावदूकैः स वादगोष्ठी समातनोत् । गीतवादित्रनृत्यादिगोष्ठीमप्येकदाऽकरोत् ॥३७॥ दाण्डी मौष्टी पुनः क्रीडां कुर्वाणानपगन् सुरान् । सान्त्वयन्नपरानेष कृतधावनवलगन त् ।३८॥ कदाचित् कलमुद्गीतं शृण्वानो देवगायनैः । . स्वीयं यशः स्फुरत्तारहारकुन्देन्दुसुन्द'म् ॥३९॥ दीर्घिकासु जलक्रीडां चक्रे स सुनारकैः । कदाचन वनक्रीडां कृतकैः पादः ॥४॥ (३३) उस पावकुमार में सकल श्रुत प्रविष्ट था और उसमें श्रुतपे विनय और विनय से लौकिकन्यास का कौशल प्रगट हुआ था। (३४) श्रीनेमिनाथ भगवान् से तीरासीहजार सात सौ पचास (८३७५०) वर्षों का अन्तर व्यतीत होने पर ये पार्श्वनाथ उद-भत हए । (३५) सौ वर्ष की आयु वाले और नौ ह थ ऊँचे यह श्रीपार्श्व कमी देवबालकों के साथ गोष्ठी करने लगे । (३६-३७) काव्य और व्याकरण से प्रचुर सालंकार उक्तियों वाली युक्तियों से तथा छन्दोगण से प्रचुर जाति, प्रस्तार आदि से वाद करने वाले देवबालों के साथ वे वादगोष्ठि करते थे, तथा कभी गीत, वाद्य, नृत्य आदि को गोष्ठियाँ भी करते हैं। (३८) दाण्डो मौष्टि आदि क्रीडा करते हुए अन्य देवों को यह पार्श्वकुमार अपने दौड़ कूद अदि कार्य से सान्त्वना देते थे । (३९) किसी समय देवों के द्वारा सुमधुर गाया हुआ, अत्यन्त उज्जल हार, कुन्द, पुष व चन्द्र के समान सुन्दर अपना यशोगान भी (पाश्च-- कुमार) सुनने लगे। (४०) देवबालकों के साथ कभी कभी वे बावड़ियों में जलक्रीडा करने थे तथा कदाचित् कृत्रिम कल्पवृक्षों के द्वारा वनक्रीड़ा का भी आनन्द लेते थे। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.520760
Book TitleSambodhi 1981 Vol 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages340
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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