________________
पामसुन्दरसूपिविकिल सवयं जन्मगेहे ताः संस्थाप्याऽऽगुर्निजालयान् । शवः शक्रासनोत्कम्पाद् जिनजन्म विभाक्यत् ॥९६॥ । शक्रस्तवेनाभिष्टुत्य सुघोषामप्यवादयत् । जिनजन्माभिषेकाय क्षिप्रमभ्युद्यतोऽभवत् ॥९७॥ वैमानिक-ज्योतिषिक-वन्य-भावनसद्मसु । नेदुर्घण्टाः सिंहनादभेरीशङ्खस्वनान्तराः ॥९८॥ श्रुत्वैषामारवं देवा भगवज्जन्म मेनिरे । । निर्ययुः स्वालयाच्छनाज्ञयाऽभ्रपटला इव ॥९९॥ मजाश्वरथगन्धर्बनर्तकीभटसंयुताः । सवृषा निर्ययुर्नाकात् सप्तानिकास्तु नाकिनाम् ॥१०॥ सौधर्मेन्द्रः शचीयुक्तः प्रतस्थे पालकाभिधम् । समारुह्यात्मरक्षायैः सुरैः सामानिकैर्वृतः ॥१०१॥ केऽपि नृत्यन्ति गायन्ति हसन्त्यास्फोरयन्त्यथ । वलान्त्यन्ये सुपर्वाणः प्रमोदभरमेदुराः ॥१०२॥ नभोम्बुधौ चलदिव्यविमानगणपङ्क्तयः ।
रेजिरे मारुतोद्भूतलोलद्वेलाचलाइव ॥१०॥ .. ... (९६-९७) उन दोनों (=मां-बेटे) को जन्मगृह में स्थापित करके (उन दिक्कुमारियोंने ) अपने घर को प्रस्थान किया। इन्द्रदेव भी जिन जन्म का विचार करते हुए वहाँ आये और शकस्तव से स्तुति करके 'सुधोषा' नामक घटा व जाकर जिनप्रभु के जन्म के बाद किये जाने वाले अभिषेक के लिए शीघ्र ही उद्यत हो गये । (९८) वैमानिक, ज्योतिष्क, व्यन्तर भौर भवनवासी देवों के भवनों में सिंहनाद, नगाड़े, मेरी और शंख की ध्वनि से मिश्रित घण्टानाद होने लगा । (९९-१००) चारों ओर फैलाई हुई इनकी ध्वनि सुनकर सभी देवों ने भगवान् का जन्म होना मान लिया और इन्द्र की आज्ञा से सभी देव अपने-अपने भवनों से बादल के समूह की तरह निकल पड़े । स्वर्गवासी देवताओं को गज, अश्व, रथ, गन्धर्व, नर्तकी, भटों और वृषभ से युक्त सेनाए* स्वर्ग से निकल पड़ी। (१०१) आत्मरक्ष (सामानिक दैवों की एक' प्रकार ) आदि सामानिक देवों से घिरे हुए सौधर्मेन्द्र ने इन्द्राणी के साथ पालक नामक विमान में बैठकर प्रस्थान किया । (१०२) कोई देव आनन्दविभोर होकर नाच रहे हैं, कोई अन्य गा रहे है, अन्य हंस रहे हैं, अन्य आस्फोटन कर रहे है तथा अन्य कूद रहे हैं । (३) भोकांश रूपी सागर में दिव्य विमानों की पंक्तियाँ वायु से उठी हुई चंचल गतिशील वेला श्रीभाँति सुशोभित हो रही थीं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org