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________________ ..पद्मसुन्दरसूरिविरचित अन्यदा मरुभूतिस्तु ज्ञात्वा वरुणयोदितः । मद्भर्ता त्वद्वधूं रेमे श्रुत्वेति विषसाद सः ॥२०॥ सोऽथ ग्रामान्तरं गत्वा कृत्वा रूपान्तरं ततः । सायं कार्पटिकोऽस्मीति सुष्वापैत्य तदोकसि ॥२१॥ निशि वीक्ष्य तयोवृत्तं भूपोऽथ मरुभूतिना । उक्तः सोऽपि विडम्ब्यनं कमळं निरकासयत ॥२२॥ स कृतच्छद्मवैराग्यो दीक्षां जग्राह तापसीम् । अतीवोमं तपस्तेपे ख्याति लेभे महीयसीम् ॥२३॥ स्वापराधप्रशान्त्यर्थ मरुभूतिस्तमभ्यगात् । क्षमस्वेति निगधासौ शिरस्तत्पादयोन्येधात् ॥२४॥ वैरं सस्मार स स्मेरः परिवाडधमाधमः । तस्योपरिष्टान्महतीं शिलां चिक्षेप निष्कृपः ॥२५॥ उपासितोऽपि दुर्वृत्तो विकृतिं भजते पराम् । पयःसिक्तोऽपि निम्बद्रुः कटुकत्वं किमुज्झति ? ॥२६॥ अथाऽसौ मरुभूत्यात्मा विन्ध्याद्रौ कुब्जके वने । मृत्वा विषयलौल्येन गजोऽभूत् सल्लकीघने ॥२७॥ (२०) एक बार मरुभूति बडे भाई कमठ की पत्नी वरुणा के द्वारा 'मेरा पति (=कमठ) तुम्हारो पत्नी में आसक्त है, तथा रमण करता है।' यह सुनकर भतीव दुःखी हुभा ॥ (२१) वह मरुभूति अन्य ग्राम में जाकर, दूसरा रूप धारण कर, 'मैं कार्पटिक (भिक्षुक) हूँ' ऐसा कहकर उसी (=कमठ ) के घर में पहुंचकर सो गया ॥ (२२) रात्रि में, उन दोनों (कमठ तथा वसुन्धरा) के वृत्तान्त को देखकर मरुभूति ने राजा अरविन्द से कहा तथा राजा ने उस कमठ को तिरस्कृत करके निकाल दिया ।। (२३) उसने (कमठ ने) कृत्रिम वैराग्य बे धारण कर तापसी दीक्षा ग्रहण की तथा अत्यन्त उग्र तप करते हुए बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त कर ली। (२४) अपने अपराध के शमनार्थ मरुभूति उसके (कमठ के) पास गया, 'क्षमा करियेऐसा कहकर उसने अपना मस्तक कमठ के चरणों में रख दिया ।। (२५) हँसते हुए मुखपाले होकर उस अत्यन्त अधम परिव्राजक कमठ ने, वैर को याद करते हुए, मरुभूति के उपर मिर्दय होकर विशाल शिला फेंकी । (२६) उपासना करने पर भो (क्षमा मांगने पर भी) दुष्ट व्यक्ति अत्यन्त विकार (=क्रोध ) को प्राप्त होता है। दूध से सींचने पर भी नीम का वृक्ष क्या अपने कडवेपन को छोड़ सकता है ? (२७) अनन्तर वह मरुभूति विन्ध्याचलपर्वत में सल्लकीतृणयुक्त घने कुब्जक बन में मर-कर विषयासक्ति के परिणामस्वरूप हाथो हुआ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520760
Book TitleSambodhi 1981 Vol 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages340
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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